बड़े से मंदिर की बड़ी सी मूर्ति के सामने हाथ जोड़कर खड़े एक बड़े आदमी ने कहा, "भगवन, हम सब जानते हैं कि प्रकृति उसी का चुनाव करती है जो सबसे शक्तिशाली होता है। जो प्रजाति कमजोर होती है और अपनी रक्षा नहीं कर पाती वो मिट जाती है। इस तरह सीमित संसाधनों का सबसे शक्तिशाली प्रजातियों द्वारा उपयोग किया जाता है और उसी से ये दुनिया विकसित होती है। तो भगवन मैंने जो मज़दूरों, गरीबों, कमजोरों और लाचारों का अपने फ़ायदे के लिए इस्तेमाल किया है वो मैंने एक तरह से प्रकृति की मदद ही की है। ऊपर से मैंने आपका ये विशालकाय मंदिर बनवाकर जो महान कार्य किया है उसकी वजह से मेरे इन छोटे मोटे पापों को तो आप निश्चित ही क्षमा कर देंगे।"
मूर्ति से आवाज़ आई, "एक समय था जब धरती पर डायनासोर सबसे शक्तिशाली प्रजाति हुआ करती थी। फिर हिमयुग आया और डायनासोरों के बड़े एवं शक्तिशाली शरीरों का अत्यधिक क्षेत्रफल ही उनकी मृत्यु का कारण बन गया। उस समय जो छोटी और कमजोर प्रजातियाँ थीं वो अपने छोटे से शरीर के कारण उस भीषण ठंड में भी बच गईं। प्रकृति सबसे शक्तिशाली को नहीं चुनती, उसे चुनती है जो अपने आप को बदलते वातावरण के अनुकूल बना पाता है। ऐसा करने में ज़्यादातर छोटे और कमजोर ही सफल हो पाते हैं।"
यह सुनते ही वो बड़ा आदमी मंदिर से ऐसे भागा जैसे उसके पीछे भूत पड़ गए हों।
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मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय गिरिराज जी
आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , आपकी गज़ल की तरह आपकी कथा का विषय भी निराला है , बहुत सुन्दर । वैज्ञानिक कसौटी पर भी खरी रचना । हार्दिक बधाई आपको ।
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया राजेश कुमारी जी
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय विनय कुमार जी
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय मिथिलेश जी
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय प्रदीप कुशवाहा जी
उसके संशय का निवारण ही उसकी अंतरात्मा ने कर दिया कहते हैं न आदमी सब समझता है पर समझना नहीं चाहता.प्रकर्ति के अनुरूप सब कहाँ ढाल पते हैं अपने आप को ,अच्छी लघु कथा लिखी है हार्दिक बधाई आ० धर्मेन्द्र जी
ये प्रकृति का नियम है कि वही बचता है जो अपने आपको परिस्थितियों के अनुकूल ढाल लेता है | डार्विन के सिद्धांत को बखूबी बताती बढ़िया लघुकथा , बधाई.
आदरणीय बड़े भाई धर्मेन्द्र जी, बहुत बढ़िया लघुकथा हुई है. शीर्षक आकर्षक है और लघुकथा उसे सार्थक भी कर रही है. लघुकथा अपने मर्म को अभिव्यक्त करने में सफल है. पंच लाइन दमदार है. इस शानदार प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई
प्रकृति सबसे शक्तिशाली को नहीं चुनती, उसे चुनती है जो अपने आप को बदलते वातावरण के अनुकूल बना पाता है।
बढ़िया शिक्षा
बधाई , सादर
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