“वहीँ होगा तुम्हारा लाड़ला इस वक़्त भी है न ? कितनी बार कहा दोस्ती बराबर वालों से ठीक है सर्वेंट के उस लड़के से उसने क्या समझ के दोस्ती की? कुछ तो कॉमन हो... पर तुम क्यूँ समझाती, खुद भी तो.... छोटे घर की... छोटी सोच ...
जैसे संस्कार हैं वही तो बच्चे को दोगी” व्हीस्की का घूँट गले में उतारते हुए मोहित बोला|
“हाँ पापा है न एक चीज कॉमन !! उसके पापा भी रोज ड्रिक करके इतनी रात गए घर में आते हैं और उसकी मम्मी पर इसी तरह चिल्लाते हैं, मेरी मम्मी की आँखें भी बरसती हैं और उसकी मम्मी की भी” बेटा अचानक अन्दर आते हुए बोला|
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आ० वीरेंदर वीर जी,आपको लघु कथा प्रभावित की मेरा लिखना सार्थक हो गया दिल से बहुत- बहुत आभार आपका.
बहुत बहुत आभार प्रतिभा जी,लघु कथा के मर्म को सही पकड़ा आपने,जो पिता बच्चों की मम्मी को दुखी रखता हो उसके बच्चे उससे सिर्फ डर से सम्मान करेंगे या बात मानेंगे दिल से नहीं दिल में तो नफरत पालेंगे यही बच्चे बड़े होकर बगावत पर उतर आयेंगे |
सबसे कीमती उपहार जो एक पिता अपने बेटे को दे सकता है वो है , उसकी माँ को प्यार और इज्ज़त देना I बधाई इस सशक्त रचना के लिए आ० राजेश कुमारी जी
विनय कुमार जी,आपका बहुत- बहुत शुक्रिया लघु कथा आपको अच्छी लगी.
अच्छी लघुकथा , बच्चे भी सब कुछ देखते , समझते हैं | बधाई आदरणीया राजेश कुमारी जी .
आ० प्रदीप कुमार जी,आपका दिल से बहुत- बहुत शुक्रिया.
मिथिलेश भैया,लघुकथा के मुखर अनुमोदन के लिए बहुत- बहुत आभार आपका.
आ० धर्मेन्द्र जी, बहुत- बहुत शुक्रिया.
लघु कथा के अनुमोदन हेतु आ० तेजवीर सिंह जी, आपका दिल से बहुत- बहुत आभार|
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