काली सड़क लाल खून से भीगकर कत्थई हो गई थी। एक तरफ से अल्ला हो अकबर के नारे लग रहे थे तो दूसरी तरफ जय श्रीराम गूँज रहा था। हाथ, पाँव, आँख, नाक, कान, गर्दन एक के बाद एक कट कट कर सड़क पर गिर रहे थे। सर विहीन धड़ छटपटा रहे थे। बगल की छत पर खड़ा एक आदमी जोर जोर से हँस रहा था।
एक एक कर जब सारे मुसलमानों के सर काट दिये गये तब बचे हुए दो चार हिन्दुओं की निगाह छत पर गई। वहाँ खड़ा आदमी अभी तक हँस रहा था। एक हिन्दू ने छलाँग मारकर खिड़की के छज्जे को पकड़ा और अपने शरीर को हाथों के दम पर उठाता हुआ कुछ ही क्षणों में छत पर पहुँच गया। छत पर खड़े आदमी की हँसी गायब हो गई। वो बोला, “मुझे क्यूँ मार रहे हो मैं तो नास्तिक हूँ।"
मारने वाले ने कहा, “तुझे इसलिए मार रहा हूँ क्यूँकि तू हम पर हँस रहा था।”
मरने वाला मरने से पहले इतना ही बोल सका, “हत्यारों को हत्या करने का बहाना चाहिए।”
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
// एक एक कर जब सारे मुसलमानों के सर काट दिये गये तब बचे हुए दो चार हिन्दुओं की निगाह छत पर गई। वहाँ खड़ा आदमी अभी तक हँस रहा था। एक हिन्दू ने छलाँग मारकर खिड़की के छज्जे को पकड़ा और अपने शरीर को हाथों के दम पर उठाता हुआ कुछ ही क्षणों में छत पर पहुँच गया।//
ये बात तों सभी कहते हैं की हिंदू क़त्ल करता है , आप उससे अलग कैसे हो सकते हैं .क्योंकि आप को सत्य का पूर्ण भान है . सुप्रीम कोर्ट हैं आप . संवेदन शील विषयों पर कलम का नियंत्रण जरूरी नही क्या .
यहाँ विशेष सम्प्रदाय का जिक्र न करते हुए आपको सरकटी लाशे अदि जों भी वीभत्स चित्रण करना था कर सकते थे .हिंदू मुस्लिम कभी नहीं लड़ते . जों लड़ाते हैं उनमें से हम आप कोई न हों .
सादर
जी , सही कहा , सादर बधाई आदरणीय
आदरणीय बड़े भाई धर्मेन्द्र जी, मज़हबी फसादों की वास्तविकता को बड़े ही सधे हुए ढंग से शाब्दिक किया है आपने इस लघुकथा में. इस लघुकथा में जैसा वातावरण आपने खड़ा किया है वह भीतर तक प्रभावित कर रहा है. लघुकथा की आकारगत सीमाओं के बावजूद रचना में प्रभावकारी वातावरण तैयार करना वाकई कठिन काम है. इस वातावरण में ही पंच लाइन // “हत्यारों को हत्या करने का बहाना चाहिए।”// अपना सघन प्रभाव पाठक मन पर छोडती है. इस सफल लघुकथा की प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई
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