पूरे गॉव में करन सिंह ही एक मात्र धींवर था! वह कुछ गिने चुने परिवारों का ही पानी भरता था! वह चार घर ठाकुरों के,चार घर ब्राह्मणों के और दो घर बनियों के पानी ले जाता था! गॉव में तीन कुंऐ थे! एक बडा कुंआ ठाकुर भूप सिंह की हवेली के अहाते में था,जिससे केवल तीन ऊंची जाति,ठाकुर,ब्राह्मण और बनियां, इन्हीं लोगों का पानी जाता था! दूसरा कुंआ चमारों का था तथा तीसरा भंगिओं का ! करन सिंह का बेटा रेलवे में अफ़सर बन गया था!बेटे ने दवाब डाला तो करन सिंह ने गॉव में पानी भरना बंद कर दिया! अगले दिन करन सिंह भोर होते ही बाल्टी रस्सी ले कर कुंए पर चढ ही रहा था कि ठाकुर के लठैत ने रोक लिया!
"काहे काका ,किसका पानी भरने आये हो"!
"अपना, भाई और किसका"!
"ये कुंआ क्या तुम्हारे पुरखों ने बनवाया है"!
"नहीं भैया,उनकी ऐसी हैसियत कहां"!
"तो फ़िर काका ,यहां से तो पानी ठाकुर साहब की मर्ज़ी से ही मिलेगा “!
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मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय डा प्राची सिंह जी,सौरभ पांडे जी,महर्षि त्रिपाठी जी, प्रतिभा पांडे जी,आप सभी जनों का हार्दिक आभार जो आपने लघुकथा को समय दिया और सराहा!साथ ही समय पर धन्यवाद नहीं दे सका,नेट प्रोबलम के कारण अतः क्षमा चाहता हूं!
वर्ण व्यस्था की विकृति इस रूप में आज भी स्वतंत्र भारत में व्याप्त है.
प्राकृतिक स्त्रोतों का बाँट दिया जाना एक तरफ ...
पर उफ़ ये उच्च वर्ण का अहंकार ..जो जीवन भर जल निकाले..जब तक गुलाम तब तक स्वीकार्य पर जहां स्वाभिमान की ज़िन्दगी जीने के लिए सर उठाए ..तो लठैतों का सामना
अच्छी लघुकथा हुई है
हार्दिक बधाई
आदरणीय तेजवीर सिंह जी, वैसे आपकी इस प्रस्तुति को ’सफल प्रस्तुति’ का सर्टिफिकेट मिल गया है, अतः विशेष कहना उचित नहीं. अलबत्ता आप एक रचनाकार के तौर पर अपने अन्य पाठकों, विशेषकर भाई महर्षिजी से, अवश्य जानने की कोशिश कीजियेगा कि उनकी दृष्टि में ’सफल लघुकथा’ के मानक क्या हैं. अन्यथा, आप भी मुग्ध हुए सतत रचनाकर्म करते रहेंगे और अन्य सुधी पाठकों को कई बातें समझ में नहीं आयेंगी. चूँकि, ऐसा भाईजी होता रहा है, अतः साझा कर रहा हूँ.
सादर
इतने समय सेवा करने के बाद भी उससे ऐसा व्यवहार ,सही है उसे पानी का मोल नही मिला |सफल लघुकथा पर आपको हार्दिक बधाई आ. TEJ VEER SINGH जी |
ये जातिवाद हमारे देश का बरसों से रिसता चला आ रहा घाव है , और अपने अपने फायदे के लिए हर कोई इसे अपने अपने तरीके से कुरेदता है , और भरने नहीं देता I बधाई इस सशक्त रचना के लिए आ० तेज वीर जी
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