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अग्नि परीक्षा (लघुकथा)

लघुकथा - अग्नि परीक्षा –

"रचना, तू यह क्या कर रही है, मुझे तो यह तेरा कदम सही नहीं लग रहा, पति पत्नी के बीच की दरार को जितनी जल्दी हो घटाना चाहिये पर तू तो और बढा रही है "!

"मॉ ,अब पानी सिर से ऊपर जा चुका है,अब मेरी बर्दास्त की सीमा समाप्त हो चली है, हर वक्त ताने"!

"नहीं बेटी ,स्त्री की बर्दास्त का तो कभी अंत ही नहीं होता, फ़िर तेरे साथ तो दो बच्चों का भी जीवन जुडा है"!

"मॉ ,झगडे की मुख्य वज़ह भी तो ये बच्चे ही हैं, राकेश तो यह मानने को तैयार ही नहीं कि ये बच्चे उसके हैं और वह भी शादी के बारह साल बाद"!

"मगर बेटी ,इसका तो हल है ना , जांच करवा लो"!

" मॉ पति पत्नी के बीच,विश्वास टूटने के बाद बचा ही क्या,और फ़िर हर बार अग्नि परीक्षा सीता ही क्यों दे"!          

.

 मौलिक व अप्रकाशित

Views: 380

Comment

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Comment by TEJ VEER SINGH on July 19, 2015 at 10:06pm

आदरणीय मिथिलेश जी, जवाहर लाल जी,अमन कुमार जी आपने अपना बहुमूल्य समय निकाल कर मेरी लघुकथा का अवलोकन किया, सराहना की, आपका हार्दिक आभार!


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Comment by मिथिलेश वामनकर on July 19, 2015 at 9:45pm

आदरणीय तेजवीर सिंह जी बहुत अच्छी लघुकथा प्रस्तुत हुई है . हार्दिक बधाई 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on July 19, 2015 at 8:05pm

अविश्वास का कोई हल नहीं होता … अंतिम पंक्तियाँ थोड़ी और बेहतर  हो सकती थी. 

Comment by aman kumar on July 18, 2015 at 12:58pm

हर रिश्ता विश्वाश पर ही चलता है .... आपको बधाई 

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