लघु कथा - मुर्गी का अंडा –
नज़ीर भाई और रसूल मियां वर्षों से पडौसी थे!नज़ीर भाई की टैक्सियां चलती थी और रसूल मियां घर के पिछवाडे ही मुर्गी पालन और अंडे बेचने का काम करते थे!
एक दिन एक मुर्गी नज़ीर भाई के अहाते में घुस गयी!पीछे पीछे रसूल मियां उसे पकडने दौडे!रसूल मियां ने देखा कि मुर्गी ने नज़ीर भाई के अहाते में अंडा दे दिया!नज़ीर भाई ने अंडा उठा लिया!रसूल मियां ने मुर्गी को पकड लिया,साथ ही नज़ीर भाई से अंडा भी मांगने लगे!
नज़ीर भाई साफ़ मुकर गये,"अरे रसूल मियां ,यह अंडा तो मैं अभी बाज़ार से लाया हूं"!
"नज़ीर भाई, यह अंडा तो मेरी ही मुर्गी का है ,पर कोई बात नहीं, आप रख लीज़िये , चलिये इस बहाने एक पडौसी की कीमत तो पता चल गयी"!
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय श्री सुनील जी,लघुकथा को सराहने हेतु!
आदरणीय नीरज जी, ओमप्रकश जी, आपने अपना बहुमूल्य समय निकाल कर मेरी लघुकथा का अवलोकन किया, सराहना की, आपका हार्दिक आभार!
बहुत सुन्दर लघुकथा आ. तेजवीर सिंह जी। बधाई
"नज़ीर भाई, यह अंडा तो मेरी ही मुर्गी का है ,पर कोई बात नहीं, आप रख लीज़िये , चलिये इस बहाने एक पडौसी की कीमत तो पता चल गयी"!.
इस एक पंक्ति ने लघुकथा में जान डाल दी आदरणीय TEJ VEER SINGH जी .
बधाई. बेहतरीन लघुकथा के लिए .
Thank you Gumnaam ji
वाह बहुत खूब ,,,,,,,,,,,,,,
आदरणीय विनय जी, मिथिलेश जी ,आपका हार्दिक आभार!आपको लघुकथा अच्छी लगी, यह मेरे लिए गौरव की बात है!मैं इसे लिखने के बाद कई दिन तक यही सोचता रहा कि पोस्ट करूं कि नहीं! पुनः आभार!
बहुत सुन्दर लघुकथा , बिलकुल सटीक । आदमी का ईमान कितनी छोटी छोटी चीजों से डगमगा जाता है , बधाई इस रचना पर आदरणीय ..
आदरणीय तेजवीर सिंह जी बहुत बढ़िया लघुकथा हुई है. इस सफल लघुकथा पर हार्दिक बधाई
पंच लाइन बहुत बेहतरीन हुई है अपना पूरा प्रभाव छोडती है.
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