इधर गॉव से ताई जी अपने परिवार के साथ, पूरे बीस दिन के लिये आ गयीं थी! उधर पिछले तीन दिन से काम वाली बाई नहीं आरही थी!
आखिरकार पांच दिन बाद बाई जी आईं!जैसे ही बाई रसोई की तरफ़ बढी, ताई जी ने कडकती आवाज़ में उसे रोक दिया"ए रुको, पहले बताओ तुम कौन जाति की हो"!
"किसलिये, कोई रिश्ता करना है क्या"!
"अरे यह तो बडी मुंहफ़ट है"!
“क्यों बुरा लगा ना"!
"तुमको जाति बताने में क्या परेशानी है"!
"हमने तो कभी आपसे आप की जाति नहीं पूछी"!
"अरे वाह,तुम किसलिये पूछोगी हमारी जाति"!
"क्योंकि, जिस तरह आप अपनी जाति से छोटी जाति वाले से काम कराना पसंद नहीं करते, तो हम भी अपने से छोटी जाति वाले के यहां क्यों काम करेंगे"!
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मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय ओम प्रकाश क्षत्रिय जी, आपका हार्दिक आभार जो आपने अपना अमूल्य समय निकाल कर मेरी लघु कथा का अवलोकन किया और सराहना की!पुनः आभार!
आदरणीय TEJ VEER SINGH जी
आप की लघुकथा में कमाल की पंच लाइन बनी है ."क्योंकि, जिस तरह आप अपनी जाति से छोटी जाति वाले से काम कराना पसंद नहीं करते, तो हम भी अपने से छोटी जाति वाले के यहां क्यों काम करेंगे"!
बधाई आप को
आदरणीय विनय जी, मिथिलेश जी,राजेश जी, प्रदीप जी,आप सभी गुणी जनों का हार्दिक आभार! मन तृप्त हो जाता है जब किसी रचना को इतने सारे गुणी जनों की सराहना मिल जाती है!पुनः आभार!
बहुत बढ़िया लघुकथा हुई है. शीर्षक को सार्थक करती इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय तेज वीर सिंह जी
वाह , बहुत बढ़िया , शीर्षक को परिभाषित करती रचना | बधाई इस रचना के लिए आदरणीय तेज वीर सिंह जी..
वाह वाह्ह बहुत बढ़िया पंच्च लाइन बहुत खूब ...जैसे को तैसा ...शीर्षक को सार्थक करती लघु कथा बहुत- बहुत बधाई आ० तेजवीर सिंह जी .
आदरणीय महोदय सादर
बहुत खूब ,
बधाई
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