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जैसे को तैसा (लघुकथा)

इधर  गॉव से ताई जी अपने परिवार के साथ, पूरे बीस दिन के लिये आ गयीं थी! उधर पिछले तीन दिन से काम वाली बाई नहीं आरही  थी!

आखिरकार पांच दिन बाद बाई जी आईं!जैसे ही बाई रसोई की तरफ़ बढी, ताई जी ने कडकती आवाज़ में उसे रोक दिया"ए रुको, पहले बताओ तुम कौन जाति की हो"!

"किसलिये, कोई रिश्ता करना है क्या"!

"अरे यह तो बडी मुंहफ़ट है"!

“क्यों बुरा लगा ना"!

"तुमको जाति बताने में क्या परेशानी है"!

"हमने तो कभी आपसे आप की जाति नहीं पूछी"!

"अरे वाह,तुम किसलिये पूछोगी हमारी जाति"!

"क्योंकि, जिस तरह आप अपनी जाति से छोटी जाति वाले से काम  कराना पसंद नहीं करते, तो हम भी अपने से छोटी जाति वाले के यहां क्यों काम करेंगे"!

.

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by TEJ VEER SINGH on July 14, 2015 at 11:43am

आदरणीय ओम प्रकाश क्षत्रिय जी, आपका हार्दिक आभार जो आपने अपना अमूल्य समय निकाल कर मेरी लघु कथा का अवलोकन किया और सराहना की!पुनः आभार!

Comment by Omprakash Kshatriya on July 13, 2015 at 7:54pm

आदरणीय TEJ VEER SINGH  जी

आप की  लघुकथा  में  कमाल की पंच लाइन बनी  है ."क्योंकि, जिस तरह आप अपनी जाति से छोटी जाति वाले से काम  कराना पसंद नहीं करते, तो हम भी अपने से छोटी जाति वाले के यहां क्यों काम करेंगे"!

बधाई आप को 

Comment by TEJ VEER SINGH on July 13, 2015 at 5:58pm

आदरणीय विनय जी, मिथिलेश जी,राजेश जी, प्रदीप जी,आप सभी गुणी जनों का हार्दिक आभार! मन तृप्त हो जाता है जब किसी रचना को इतने सारे गुणी जनों की सराहना मिल जाती है!पुनः आभार!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 13, 2015 at 5:37pm

बहुत बढ़िया लघुकथा हुई है.  शीर्षक को सार्थक करती इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय तेज वीर सिंह जी

Comment by विनय कुमार on July 13, 2015 at 1:25pm

वाह , बहुत बढ़िया , शीर्षक को परिभाषित करती रचना | बधाई इस रचना के लिए आदरणीय तेज वीर सिंह जी..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 13, 2015 at 1:12pm

वाह वाह्ह  बहुत बढ़िया पंच्च लाइन बहुत खूब ...जैसे को तैसा ...शीर्षक को सार्थक करती लघु कथा बहुत- बहुत बधाई आ० तेजवीर सिंह जी .

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 13, 2015 at 12:25pm

आदरणीय महोदय सादर 

बहुत खूब , 

बधाई 

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