शंभू सिंह्जी पत्नी के देहांत के बाद, बेटे ब्रिगेडियर बाबू सिंह के साथ रहने लगे थे! ब्रिगेडियर साहब के बंगले पर रात को पार्टी चल रही थी!
आउट हाउस में शंभू सिंह जी रात के खाने का इंतज़ार कर रहे थे! पार्टी के कारण किसी को शंभू सिंह को खाना देने की याद ही नहीं रही !
शंभू सिंह जी की, लेटे लेटे , कब आंख लग गयी ,पता ही नहीं चला!
सुबह ब्रिगेडियर साहब का अर्दली चाय लेकर आया तो शंभू सिंह जी पूछ बैठे,"रात को किस बात की पार्टी थी"!
"जन्म दिन की"!
शंभू सिंह जी ने देखा कि चाय के साथ केक भी है, फ़िर सोचने लगे कि कल किस का जन्म दिन था!बहुत ज़ोर डालने पर भी याद नहीं आरहा था!
फ़िर अचानक याद आया,अरे कल तो खुद उनका अपना ही जन्म दिन था!बेटे पर गर्व महसूस होने लगा!खुशी में, रात को खाना ना मिलने की बात भी भूल गये!
केक का टुकडा मुंह मे रखा,"बडा स्वादिष्ट है, किसने बनाया"!
"साहब टॉमी (कुत्ते) के जन्म दिन पर सबसे अच्छी बेकरी “ बेकवैल” से ही केक मंगवाते हैं"!
अचानक शंभू सिंह जी को केक कडुआ लगने लगा, जैसे, किसी ने ज़बरन, उनके मुंह में , नीम की निंबोडियां डाल दी हों!
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मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय धर्मेंद्र कुमार सिंह जी और आदरणीय डॉ गोपाल नरायन श्रीवास्तव जी, आप दौंनों का हार्दिक आभार!
aadarneey
achhee katha kahee. saadar .
आदरणीय तेजवीर जी, इस अच्छी लघुकथा हेतु दाद कुबूल करें।
आदरणीय महिमा जी, कथा अवलोकन एवम सराहना हेतु आपका हार्दिक आभार!
हृदयस्पर्शी प्रस्तुति..बधाई आपको
आदरणीय मिथिलेश जी, कथा के हर पहलू पर आपकी व्याख्या मन को प्रसन्न कर गयी!कथा लेखन का मेरा अनुभव बहुत नया है अतः छोटी मोटी त्रुटियां होना स्वाभाविक है!आपने मेरी कथा को सराहा, मन अभिभूत हो गया!क्या आपके द्वारा सुझाये गये तरीके से कथा को पुनः लिख सकते हैं!आपका हार्दिक आभार!
आदरणीय तेजवीर सिंह जी, बहुत ही संवेदनशील विषय पर, बड़े ही सधे शिल्प के साथ, कथानक की कसावट के अनुरूप शब्द चयन करते हुए एक सफल लघुकथा लिखी है आपने. अचानक मिलने वाला झटका ही लघुकथा को सफल भी बना रहा है और गहरे तक सोचने को विवश भी कर रहा है. इस प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई.
लघुकथा के वाक्यों को अलग अलग पंक्ति में न रखकर, इस तरह पैरा वाइज रखें तो और आकर्षक लगेगी.
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शंभू सिंहजी पत्नी के देहांत के बाद, बेटे ब्रिगेडियर बाबू सिंह के साथ रहने लगे थे। ब्रिगेडियर साहब के बंगले पर रात को पार्टी चल रही थी। आउट हाउस में शंभू सिंह जी, रात के खाने का इंतज़ार कर रहे थे। पार्टी के कारण किसी को शंभू सिंह को खाना देने की याद ही नहीं रही । शंभू सिंह जी की, लेटे लेटे, कब आंख लग गयी, पता ही नहीं चला।
सुबह ब्रिगेडियर साहब का अर्दली चाय लेकर आया तो शंभू सिंह जी पूछ बैठे-
"रात को किस बात की पार्टी थी"!
"जन्म दिन की"!
शंभू सिंह जी ने देखा कि चाय के साथ केक भी है, फ़िर सोचने लगे कि कल किस का जन्म दिन था। बहुत ज़ोर डालने पर भी याद नहीं आरहा था। फ़िर अचानक याद आया, अरे कल तो खुद उनका अपना ही जन्म दिन था। बेटे पर गर्व महसूस होने लगा। खुशी में, रात को खाना न मिलने की बात भी भूल गये।
केक का टुकडा मुंह मे रखा, "बडा स्वादिष्ट है, किसने बनाया?"
"साहब टॉमी (कुत्ते) के जन्म दिन पर सबसे अच्छी बेकरी 'बेकवैल' से ही केक मंगवाते हैं।"
अचानक शंभू सिंह जी को केक कड़वा लगने लगा, जैसे किसी ने ज़बरन उनके मुंह में, नीम की निंबोलियाँ डाल दी हों ।
आदरणीय मदन लाल श्रीमाली जी, लघु कथा अवलोकन हेतु आपका हार्दिक आभार!मगर वृद्ध ब्रिगेडियर सहब नहीं हैं ,उनके पिता जी हैं!पुनः आभार!
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