रहें जो खुद मकानों में वो घर की बात करते हैं
जड़ों को काटने वाले शज़र की बात करते हैं.
जहाँ जिस थाल में खाते उसी को छेदते देखो
रहें तन से इधर लेकिन उधर की बात करते हैं
लगे अच्छी उन्हें बस आग फिरते हैं लिए माचिस
अजब वो लोग हैं केवल समर की बात करते हैं.
छपी तस्वीर अखबारात में उस बाँध की देखो गिरा वो चार दिन में ही अजर की बात करते हैं.
कदम सच्चे सिपाही के भला क्या रात रोकेगी हिफ़ाजत क्या करेंगे जो सहर की बात करते हैं
बनाते मूर्ख जनता को उगे मशरूम से बाबा सदा अपनी दुआओं के असर की बात करते हैं
बनाते घोंसला देखो परिंदे चौंच से अपनी सबक उनके लिए है जो हुनर की बात करते हैं
कहाँ किसने वफ़ा की थी कहाँ किसने जफ़ा की थी चलो छोडो नये अपने सफ़र की बात करते हैं (मौलिक एवं अप्रकाशित ) |
Comment
महर्षि त्रिपाठी जी,आपको ग़ज़ल पसंद आई दिल से बहुत -बहुत शुक्रिया आपका|
जहाँ जिस थाल में खाते उसी को छेदते देखो
रहें तन से इधर लेकिन उधर की बात करते हैं,,,,,,,बढ़िया आ. rajesh kumari जी |
आ० सुशील सरना जी ,बढ़िया शेर कोट किया है बधाई .आपको ग़ज़ल अच्छी लगी मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से आभारी हूँ |
राहुल दांगी जी ,आपका बहुत- बहुत शुक्रिया |
आ० रेखा मोहन जी ,इस होंसलाफ्जाई का दिल से शुक्रिया.
शिज्जू भैया,ग़ज़ल पर प्रतिक्रिया के लिए दिल से आभार आपको कुछ शेर पसंद आये ,बाकि सहर वाले शेर पर जो मैं स्पष्टीकरण देना चाहती थी वो मिथिलेश जी ने दे दिया अब उस नजरिये से पढेंगे तो स्पष्ट होगा |
दुसरे शेर में थोड़ी सी तब्दीली कर रही हूँ शायद पहले से बेहतर लगे --
रहें तन से इधर मन से उधर की बात करते हैं
आपका तहे दिल से आभार
विनय कुमार जी ,ग़ज़ल आपको पसंद आई तहे दिल से आभार|
मिथलेश भैया ,शेर दर शेर समीक्षा ने मेरा लेखन सार्थक कर दिया तथा आश्वस्त किया कि अशआर आपनी बात रखने में सफल हैं तहे दिल से बधाई |
बनाते घोंसला देखो परिंदे चौंच से अपनी
सबक उनके लिए है जो हुनर की बात करते हैं
वाह … आदरणीया राजेश कुमारी जी बहुत ही सुंदर भावों के अशआर बन पड़े हैं .... इस खूबसूरत प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई। इसी क्रम में एक शेर अर्ज़ है :
मिला न सके जो कभी नज़रों से नज़रें
वही बशर आज नज़र से बात करते हैं
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online