अपने अधरों से ....
अपने अधरों से अधरों पर कोई कथा न लिख जाना
अंतर्मन के प्रेम सदन की कोई व्यथा न लिख जाना
श्वास सुरों में स्पंदन तुम्हारा
स्मृति भाल पे चंदन तुम्हारा
प्रेम पंथ की मन कन्दरा में
कोई विरह प्रथा न लिख जाना
अपने अधरों से अधरों पर कोई कथा न लिख जाना
अंतर्मन के प्रेम सदन की कोई व्यथा न लिख जाना
संचित पलों की मृदुल अनुभूति
अभी रक्ताभ अधरों पर जीवित है
तुम नीर भरे नयनों के भाग्य में
कोई अमिट क्षुधा न लिख जाना
अपने अधरों से अधरों पर कोई कथा न लिख जाना
अंतर्मन के प्रेम सदन की कोई व्यथा न लिख जाना
जिस की साँसों की सुरभि का
रजनी करती मधुर अभिनंदन
भुजबंध के उन स्नेह क्षणों में
कोई अतृप्त तृषा न लिख जाना
अपने अधरों से अधरों पर कोई कथा न लिख जाना
अंतर्मन के प्रेम सदन की कोई व्यथा न लिख जाना
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय Harash Mahajan जी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।
बहुत ही सुंदर भाव सुशील जी ...बहुत बहुत बधाई !!
आदरणीय maharshi tripathi जी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।
सुन्दर ,भाव पूर्ण रचना पर आपको बधाई आ. Sushil Sarna जी |
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