अपनी साँसे भी मुझे अपनी सी लगती ही नहीं,
बात इतनी सी मगर दिल से ये निकली ही नहीं |
दिल में आतिश है बहुत ये हुस्न बे जलवा नहीं
चाहता हूँ आग उसमें पर वो जलती ही नहीं |
शाम से शब ग़ैर की ज़ुल्फ़ों में जब करने लगे
रात ऐसी जो हुई फिर सुब्ह निकली ही नहीं |
जब तलक थे हमकदम, अपना सफ़र चलता रहा,
दरिया क़तरा जब हुवा, मंज़िल वो मिलती ही नहीं |
इस कदर रोया हूँ मैं आखें भी धुंधला सी गई,
आज कुछ बूँदे भी आँखों से निकलती ही नहीं |
हर्ष महाजन
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हर्ष महाजन
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय हर्ष जी संशोधन के बाद क्या खूब निखार आया है ग़ज़ल में. वाह वाह
आदरणीय समर कबीर जी मेरे कहे के अनुमोदन के लिए और मिसरे में आपके सुझाए इस संशोधन "बात इतनी सी मगर दिल से ये निकली ही नहीं" को देखकर झूम गया हूँ क्योकि यही मिसरा मुझे भी सूझा था. चलिए आपके जैसा एक मिसरा तो सोचा.
आदरणीय Rahul Dangi जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया !!
आदरणीय Samar kabeer जी आपकी इस्लाह और इनायत से गज़ल का आकार कुछ इस तरह हुआ है दिली शुक्रिया एक बार फिर |
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अपनी साँसे भी मुझे अपनी सी लगती ही नहीं,
बात इतनी सी मगर दिल से ये निकली ही नहीं |
दिल में आतिश है बहुत ये हुस्न बे जलवा नहीं
चाहता हूँ आग उसमें पर वो जलती ही नहीं |
शाम से शब ग़ैर की ज़ुल्फ़ों में जब करने लगे
रात ऐसी जो हुई फिर सुब्ह निकली ही नहीं |
जब तलक थे हमकदम, अपना सफ़र चलता रहा,
दरिया क़तरा जब हुवा, मंज़िल वो मिलती ही नहीं |
इस कदर रोया हूँ मैं आखें भी धुंधला सी गई,
आज कुछ बूँदे भी आँखों से निकलती ही नहीं |
हर्ष महाजन
आदरणीय kanta roy जी आपकी इस हौंसिला अफजाई का मैं दिल से शुक्र गुज़ार हूँ | आपको मेरा पेश करदा इंतेखाब पसंद आया है तो यूं समझिये मी मेहनत सफल हो गई | यकीन मानिए अपना ये इंतेखाब इस मंच पर प्रस्तुत करते हुए मैं डर रहा था कि शायद मैं अपने भाव आप सब तक पहुंचाने में कामयाब रहूँगा या नहीं | क्या कहूँ ---आपके इन खूबसूरत अलफ़ाज़ के लिए एक बार फिर से शुक्रिया |
उम्मीद करता हूँ आईंदा भी नज़रें इनायत होती रहेंगी |
साभार !!
हर्ष महाजन
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी बहुत दिनों से आप सबकी कृतियों को देखा है उनके भाव समझने की भी बहुत कोशिश की है है ....मुझे बहुत ख़ुशी हुई के आपकी कलम से कुछ शब्द मेरी रचना पर उतरे | दिल से आभार व्यक्त कैसे करूँ समझ नहीं आता | ग़ज़ल आपको पसंद तो यकीन जानिये नेरी म्हणत सफल हुई और आपके मशवरे का आगे से ख्याल रखूंगा | गुजारिश है आप इसी तरह राह दिखाते हुए हौंसिला अफजाई करते रहिएगा और नज़रें करम बनाये रखियेगा | बहुत बहुत शुक्रिया |
साभार
हर्ष महाजन
आदरणीय Samar kabeer जी आपकी इस्लाह के लिए मेरे पास शब्द नहीं कि क्या कहूँ ..... दोष मुक्त करते हुए आपने इस नाचीज़ की रचना को मान दिया और इसके के ज़रिये बहुत कुछ दे दिया .... जिस तरह खोल कर हर चीज़ को समझाया है दिल तक पहुंची है..आपकी दी हर राय पर अगली रचना में ध्यान रखने की कोशिश करूंगा | आपसे अनुरोध है अपना हाथ ऐसे ही बनाए रखियेगा , बहुत बहुत शुक्रिया |
साभार !!!
हर्ष महाजन
आदरणीय हर्श भाई , गज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाई । आदरणीय समर भाई की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर है , ख्याल कीजियेगा ।
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