For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल- काश अपना भी घौंसला होता।

२१२२ १२१२ २२

काश अपना भी' घौंसला होता।
मैं किसी घर का' लाडला होता।

माँ पिता जी की' गोद में मैं भी।
खेलता कूदता पला होता।

वासना को कहें मुहब्बत सब।
अब नहीं इश्क बावला होता।

शक्ल से तो बडा भला है वो।
काश दिल से जरा भला होता।

उम्र तन्हाँ न यूँ गुजरती गर।
इक कदम का भी' हौसला होता।

मैं न कहता कभी खुदा से दोस्त।
आज इंसाफ अगर चला होता।

शुक्र है वो यहाँ नहीं वरना।
जलजला और जलजला होता।

इस जमीं तक कभी न आता मैं।
इश्क में जो नहीं जला होता।

श्याम काले थे' राम जी काले।
रंग मेरा भी' साँवला होता।

नफरतों से भरा जहाँ 'राहुल'।
अच्छा' होता कि खोखला होता।

मौलिक व अप्रकाशित ।

Views: 817

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rahul Dangi Panchal on July 28, 2015 at 2:39pm
शुक्रिया आदरणीय मनोज भाई जी । खुशी हुई यह सुनकर कि इश्क बावला अब भी है बेशक गुमनाम हो। सादर धन्यवाद
Comment by मनोज अहसास on July 28, 2015 at 2:30pm
वाह वाह
वाह
दो दिन पहले इस बहर की एक ग़ज़ल गुनगुना रहा था
और आज आपकी ग़ज़ल सुनी
मन भर गया
लेकिन
इश्क़ अब भी बावला है
थोडा थोडा आप में और
ज़रा सा हममे दिखाई देता है
सादर
Comment by Rahul Dangi Panchal on July 28, 2015 at 2:28pm
आदरणीय शिज्जू जी बहुत दिन के बाद आपकी टिप्पणी देखकर बहुत खुशी हुई ।
Comment by Rahul Dangi Panchal on July 28, 2015 at 2:23pm
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी, आदरणीय शिज्जू जी,आदरणीया कान्ता जी बहुत बहुत आभार ।
निवेदन है यह स्नेह हमेशा बनाए रखे और मेरा मार्ग दर्शन करतें रहें।
मंच को निजि कारणो से कम समय दे पा रहा हूँ इसके लिए क्षमा ।

गजल को संशोधित किया है क्रपया एक नजर और डाले ।
सादर नमन।
Comment by kanta roy on July 28, 2015 at 9:19am
शक्ल से तो बडा भला है वो।
काश दिल से जरा भला होता।.......... काले दिल वालों के लिए क्या बात कही है आपने ..... वाह !! वाह !!

श्याम काले थे' राम जी काले।
रंग मेरा भी' साँवला होता....... वाह !!!!!!! बहुत खूब । क्या मिजाज उभरे है इस साँवलेपन के ........ बहुत खूब गजल बनी है बधाई आपको आदरणीय राहुल दांगी जी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 27, 2015 at 8:54pm

आदरणीय राहुल जी आपकी ग़ज़ल में बहुत सुधार आया है, बह्र को आपने खूब साधा है, कहन भी अच्छी हुई है मेरी तरफ से दाद कुबूल फरमायें।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 27, 2015 at 4:38pm

आदरणीय राहुल भाई जी छोटी बह्र में लाजवाब ग़ज़ल हुई है. मज़ा आ गया इसे गुनगुनाकर. दाद दाद ढेर सारी दाद ...... और ये दो अशआर तो कमाल हुए है---

शुक्र है वो यहाँ नहीं वरना।
जलजला और जलजला होता।


श्याम काले थे' राम जी काले।
रंग मेरा भी' साँवला होता।

Comment by Rahul Dangi Panchal on July 27, 2015 at 2:02pm
आदरणीय गिरीराज जी, आदरणीय हर्ष जी शुक्रिया
Comment by Harash Mahajan on July 27, 2015 at 1:53pm

आदरणीय Rahul Dangi जी आपकी ग़ज़ल का हर शेर दिल छूता हुआ निकलता है सर बहुत बहुत बधाई | साभार |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 27, 2015 at 1:12pm

आदरणीय राहुल भाई , गज़ल बहुत सुन्दर लगी , हार्दिक बधाई आपको ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
9 minutes ago
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
20 minutes ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं करवा चौथ का दृश्य सरकार करती  इस ग़ज़ल के लिए…"
46 minutes ago
Ravi Shukla commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेंद्र जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं शेर दर शेर मुबारक बात कुबूल करें। सादर"
50 minutes ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी गजल की प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई गजल के मकता के संबंध में एक जिज्ञासा…"
52 minutes ago
Ravi Shukla commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय सौरभ जी अच्छी गजल आपने कही है इसके लिए बहुत-बहुत बधाई सेकंड लास्ट शेर के उला मिसरा की तकती…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
16 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"माता - पिता की छाँव में चिन्ता से दूर थेशैतानियों को गाँव में हम ही तो शूर थे।।*लेकिन सजग थे पीर न…"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे सखा, रह रह आए याद। करते थे सब काम हम, ओबीओ के बाद।। रे भैया ओबीओ के बाद। वो भी…"
22 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"स्वागतम"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देवता चिल्लाने लगे हैं (कविता)

पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी…See More
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service