For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मज़बूत बुनियाद - (लघुकथा) - मिथिलेश वामनकर

“मम्मा मेरे लिए ब्रेकफास्ट में केवल फ्रूट सलाद बनाना.”
“आज फ्रूट्स नहीं है... कुछ और बना दूं ?”
“नहीं” - परी ने मना कर दिया क्योकिं पार्टी में हैवी डाईट के कारण ब्रेकफास्ट लाईट करना चाहती थी. तभी बेडरूम से पापा बाहर आये. अपनी इकलौती बेटी को देर रात से घर आने के लिए समझाते रहें और मॉर्निंग-वाक के लिए निकल गए.
“मम्मा... ये पापा सुबह-सुबह चालू हो जाते है, ये करो, ये मत करो.... ये लेट नाईट पार्टीज हमारा कल्चर नहीं है. ब्ला ब्ला ब्ला.......”
“तुम्हारी केयर करते है पापा, इसलिए समझाते है.”
“ये क्या... हमेशा कल्चर-कल्चर की स्पीच देते रहते है. लड़की हूँ न इसलिए. वैसे भी पापा की जेनरेशन ही ऐसी है जो लड़की की बर्थ से ही परेशान हो जाते है. पापा को बेटा चाहिए होगा... है न माँ?”
“छी ! कैसी बात करती है पगली....? इधर आ, बैठ, तुझे एक बात बताती हूँ.”
“कौन सी बात मम्मा....”
“हम्म्म..... हमें शादी के लिए घरवालों को, मतलब तुम्हारे दादा-दादी और नाना-नानी को, मनाने में पूरा एक साल लगा. उन्हीं दिनों में ये अक्सर कहते थे कि अनु शादी के बाद मुझे तुम्हारे जैसी ही सुन्दर बिटिया चाहिए...... तुम्हारा नाम तक सोच लिया था....परी....” मम्मा देर तक बताती रही.
पापा मॉर्निंग-वाक से लौटकर आये तो उनके हाथों में फलों से भरी दो थैलियाँ थी. उन्होंने थैलियाँ डाइनिंग टेबल पर रखी और न्यूज़-पेपर उठाकर, अपने कमरें में चले गए.
परी, मम्मा की आँखों में विश्वास की बुनियाद को और मज़बूत होते देखती रही.

------------------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित) © मिथिलेश वामनकर
----------------------------------------------------

Views: 832

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 6, 2015 at 9:50pm

आदरणीय  Er Nohar Singh Dhruv 'Narendra' जी , लघुकथा  की सराहना और सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. 

Comment by Er Nohar Singh Dhruv 'Narendra' on August 6, 2015 at 7:28pm
आज के समय और प्पिऋवष को देखते हुए बेटी को समझाना एवं उसके लिए चिंता करना एक पिता के लिए निहायत ही ज़रूरी है ताकि वो अपने परी सी गुड़िया को आदमखोर भेड़ियों से दूर रख सके... बहुत ही सुन्दर रचना गढ़ा है आपने आद० मिथलेश वामनकर जी... बहुत बहुत बधाई...

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 1, 2015 at 1:31pm

इस लघुकथा पर गुणीजनों से मार्गदर्शन निवेदित है. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 30, 2015 at 11:54pm

जितने  मन से इस लघुकथा को लिखा है उतने ही मन से आपकी आत्मीय प्रतिक्रिया पाकर दिल खुश हो गया आदरणीय आशुतोष जी. हार्दिक आभार  

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 30, 2015 at 2:45pm

आदरणीय मिथिलेश जी ..बहुत ही शानदार लघु कथा है ..एक अलग ही ताजगी मिली ..मेरे भी ऐसे बहुत दोस्त हैं जिनकी परी के नाना नानी दादा दादी को मनाने में भरी मसक्कत करनी पडी ..और वो भी अपनी परी से इतना ही प्यार करते हैं ..आपकी सोच को सलाम  यह कहानी तो ज़माने से मेरे गिर्द घूम रही थे लेकिन इसे इस अंदाज में भी बयां किया जा सकता था मैंने सोचा न था ..सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 30, 2015 at 1:16pm

आदरणीय तेज बहादुर सिंह जी, सही कहा आपने. लघुकथा के प्रयास पर सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 30, 2015 at 1:15pm

आदरणीया बबिता जी आपने लघुकथा को महसूस किया और एक सार्थक प्रतिक्रिया दी. सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 30, 2015 at 1:13pm

आदरणीया अर्चना जी, आपकी प्रतिक्रिया की पहली पंक्ति ने मुग्ध कर दिया-"वाकई में वक्त ने करवट ले ली हैं ।" दरअसल लघुकथा के रचनाकर्म के मूल में यही संवेदना मेरे भीतर चल रही थी और संभवतः यही लघुकथा की प्रेरणा भी थी. रचना के मर्म को लेखक के समानांतर  महसूस करते हुए सकारात्मक और सार्थक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार  

Comment by TEJ VEER SINGH on July 30, 2015 at 1:02pm

आदरणीय मिथिलेश जी, बहुत ही मार्मिक लघुकथा,बधाई!आज की पीढी को समझना और समझाना कितना ज़टिल कार्य है,कितनी बारीकी से वर्णन किया है!अति सुंदर!

Comment by babita choubey shakti on July 30, 2015 at 6:59am
आ बामनकर जी बहुत सुन्दर कथा बेटी के मन से बो भाव जो उसे पिता की सीख़ भी लेक्चर लग रही थी माँ की बातों द्वारा समझाना और फिर पिता का फ़्रूट लाना बिलकुल जैसे सच में द्रश्य सामने था ।बहुत ही अच्छी लगी बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"ग़ज़ल — 212 1222 212 1222....वक्त के फिसलने में देर कितनी लगती हैबर्फ के पिघलने में देर कितनी…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"शुक्रिया आदरणीय, माजरत चाहूँगा मैं इस चर्चा नहीं बल्कि आपकी पिछली सारी चर्चाओं  के हवाले से कह…"
2 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी आदाब, हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिय:। तरही मुशाइरा…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"  आ. भाई  , Mahendra Kumar ji, यूँ तो  आपकी सराहनीय प्रस्तुति पर आ.अमित जी …"
4 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"1. //आपके मिसरे में "तुम" शब्द की ग़ैर ज़रूरी पुनरावृत्ति है जबकि सुझाये मिसरे में…"
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जनाब महेन्द्र कुमार जी,  //'मोम-से अगर होते' और 'मोम गर जो होते तुम' दोनों…"
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब, माज़रत ख़्वाह हूँ, आप सहीह हैं।"
9 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
16 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
16 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
16 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
16 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
16 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service