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गजल
2212 2212
हर बार मजहब मत उठा,
नाचीज यह गजब मत ढा।
जो हो न कुछ,खबर न सजा,
आका, कभी रहवर न बना।
रोटी पकी, अब चुप रहो,
जनता जली,जन को न जला।
झंडे उठा तू था गया,
दे कर उसे, तूने छला।
मजहब भला करता कि वह
हरदम रहा मरता चला?
ढोते रहे बस भार-से,
ईमान तो उनकी बला।
सुना कि मानेंगे सभी
मजहब,कभी बातें भला?
'मौलिक व अप्रकाशित'@मनन

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Comment by Manan Kumar singh on August 1, 2015 at 9:07am
जरूर,आभार
Comment by Rahul Dangi Panchal on July 31, 2015 at 11:10pm
बहुत सुन्दर प्रयास हुआ भाई जी।
बस बहर देखे।

हर बार मज/हब मत उठा,
२२१२/२२१२
नाचीज यह /गजब मत ढा।
२२१२/१२२२
जो हो न कुछ/,खबर न सजा,
२२१२/१२११२
आका, कभी/ रहवर न बना।
२२१२/२२११२
रोटी पकी,/अब चुप रहो,
२२१२/२२१२
जनता जली,/जन को न जला।
२२१२/२२११२
झंडे उठा/ तू था गया,
२२१२/२२१२
दे कर उसे,/ तूने छला।
२२१२/२२१२
मजहब भला/ करता कि वह
२२१२/२२१२
हरदम रहा/ मरता चला?
२२१२/२२१२
ढोते रहे/ बस भार-से,
२२१२/२२१२
ईमान तो/ उनकी बला।
२२१२/२२१२
सुना कि मा/नेंगे सभी
१२१२/२२१२
मजहब,कभी/ बातें भला?
२२१२/२२१२


यहाँ पर उपस्थित गजल की कक्षा पढे, गजल की बाते पढे।
आपको बहुत लाभ होगा । मैं यहीं से सीखा हूँ कोशिश करते रहो भैया। शुभकामनाएँ।

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