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भ्रमर,कली से---गजल
2122 2122 2122 212
सोचता हूँ क्या कली की बंदगी का नाम दूँ?
कह गया हूँ मैं बहुत, लो आ तुझे पैगाम दूँ।
रूप की आराधना हो साधना यह कामना,
इश्क करना चाहिये मैं नाम और इनाम दूँ।
घूम आया हर गली मैं बात प्यारी गुनगुना,
अब न टूटें दिल कभी यह देख मैं पैगाम दूँ।
राग-रस की कामना अनुरागियों की प्रीत है,
तू बसी मन में हमारे, और कौन मक़ाम दूँ?
रात तेरी, दिन तुझे री सुबह तुझको शाम दूँ,
पंखुड़ी के होंठ तेरे गीत उनके नाम दूँ।
कह रहे सब बंद हो जाता मधुप है कोष में,
सो न जाये रूप चपल है चाह और पयाम दूँ।
बिछ गये हैं पुष्प सारे देवताओं के यहाँ,
कौन अब आभा बने, देख तुझको काम दूँ।
आ चलें अब देर हो ना दंश हैं हर बदन पर,
घायलों के घाव भर दें,तोप फेंक तमाम दूँ।
घाव जो उन्हें लगे जो घाव-प्रेमी हैं अभी,
आ करें कुछ जिंदगी दें,साथ में मैं नाम दूँ।
कौन कर सकता अदा बोलो कली की कीमतें ?
बिक चलें बेमोल आओ,दो सुबह मैं शाम दूँ।
"मौलिक व अप्रकाशित"@मनन

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Comment by Manan Kumar singh on August 10, 2015 at 12:04am
आभार आपका गोपाल भाईजी
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 1, 2015 at 5:32pm

अच्छा प्रयास है .

Comment by Manan Kumar singh on July 31, 2015 at 10:20pm
भाई कुँवर जी,आभार आपका।
Comment by कंवर करतार on July 31, 2015 at 9:09pm

भाई मनन जी,सुंदर गजलके लिए कोटिश: बधाई

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