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गीतिका छंद
[प्रत्येक पंक्ति 14-12 की यति से कुल 26 मात्रा होती है तथा प्रत्येक पंक्ति की तीसरी, दसवीं, सत्रह्वीं और चौबिसवीं मात्रा लघु ही होती हैं]

शारदे मां वर्ण-व्यंजन में प्रचुर आसक्ति दो।
शब्द-भावों में सहज रस-भक्ति की अभिव्यक्ति दो।।
प्रेम का उपहार नित संवेदना से सिक्त हो।
हर व्यथा-संघर्ष में भी क्रोध से मन रिक्त हो।।1

वृक्ष सा जीवन हमारा हो नदी सी भावना।
तृप्त ही करते रहें निश-दिन यही है कामना।।
आचरण में धर्म-सत्यम, कर्म में सदभावना।
जीव के प्रति त्याग हो जड़ से मिटे हर वासना।।2

शब्द की लयबद्ध सरगम तार सप्तक रागिनी।
विश्व में इक राग हो झंकार वीणा वादिनी।।
रंग संशय जाति का हर देश में प्रतिकार हो।
सत्य से परिचय करा मां इक लहू का सार हो।।3

द्वेष-हिंसा, काम-मत्सर हर हृदय से दूर हो।
बीज जैसा दृढ़ सृजन वट-वृक्ष सा भरपूर हो।।
दीन को अति हीन को घर-वस्त्र-भोजन, मान दो।
बुद्धि-मन से क्षुब्ध जन को शान्ति-सुख, रस-गान दो।।4

रचनाकार--- के0पी0 सत्यम /मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 4, 2015 at 8:48pm

आ0 शर्दिंदु सर जी, सादर प्रणाम! आपने सही मार्गदर्शन किया है.  ऐसा भी हो सकता है किंतु अर्थ एक ही होता है. आपका बहुत बहुत आभार.

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 4, 2015 at 8:41pm
आ0 वामनकर भाईजी, सादर प्रणाम! आपका बहुत बहुत आभार.
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 4, 2015 at 2:40pm

वृक्ष सा जीवन हमारा हो नदी की भावना।       -   वृक्ष सा जीवन हमारा हो नदी सी भावना।
तृप्त ही करते रहें निश-दिन यही है कामना।।

सुंदर  और  भावपूर्ण  गीतिका छंद  रचना के लिए हार्दिक  बधाई  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on August 4, 2015 at 1:05pm
//...... क्रोध मन से रिक्त हो।।1//
या आप कहना चाहते हैं "क्रोध से मन रिक्त हो" ? कृपया देखिएगा. सादर.

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 3, 2015 at 12:37pm

आदरणीय केवल जी बहुत सुन्दर गीतिका छंद हुआ है तीनों पद बहुत सुन्दर है. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई 

कृपया ध्यान दे...

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