दोनों लगभग एक ही साथ चित्रगुप्त के समक्ष पहुंचे क्योकिं आश्रम में हृदयघात से जब बाबा दुनिया से सिधारे तो अगाध श्रद्धा रखने वाले भूपेश भाई ने भी सदमे में तत्काल प्राण त्याग दिए.
चित्रगुप्त ने बाबा को स्वर्ग में भेज दिया और भूपेश भाई को नर्क जाने का आदेश दिया.
सुनकर भूपेश भाई सन्न रह गए, लेकिन बाबा के आश्वासन की याद आते ही खुद को सँभालते हुए बोले-
“मुझे नरक क्यों भगवन?”
“क्योकि तुमने कोई पुण्य कार्य नहीं किया वत्स!”
“नहीं भगवन!....जीवन भर आश्रम में दान किया, हवन, कथापाठ कराया, गरीबों में भोजन और वस्त्र बंटवायें”
“अच्छा वत्स ये बताओ, आश्रम में दान किया, उस धन का किसने और क्या उपयोग किया?”
“बाबा ने उससे जमीनें खरीदी और आश्रम बनवाये.”
“हवन और कथा पाठ किसने किया? गरीबों में भोजन और वस्त्र किसने बाँटें?”
“जी बाबा ने”
“वत्स! पुण्य के समस्त कार्य तो बाबा ने किये न ? आराधना का स्थापन्न अभिकर्ता नहीं हो सकता वत्स. फिर तुम्हें स्वर्ग कैसे भेज दूं? अच्छा, अपने पुण्य और पाप की तुलना करके तुम ही बताओं वत्स कि क्या उचित है?”
भूपेश भाई बिना उत्तर दिए, नर्क-द्वार की ओर बढ़ गए.
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(मौलिक व अप्रकाशित) © मिथिलेश वामनकर
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Comment
आदरणीय वीरेंदर जी लघुकथा की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार.
संभवतः व्यंग्य शैली में भी कथ्य के मर्म को संप्रेषित करने में असफल हुआ हूँ ... लघुकथा अपने उद्देश्य में सफल होती दिखाई नहीं दे रही है. कथानक प्रतीकात्मक उठाया है लेकिन वास्तविक सा संप्रेषित हो रहा है. सादर
आदरणीय गिरिराज सर, लघुकथा की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार.
आदरणीया प्रतिभा जी, लघुकथा की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार.
आदरणीय ओमप्रकाश जी, लघुकथा की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार.
आदरणीय मिथिलेश भाई , यद्यपि दान भी एक पुण्य कार्य मे शामिल है , नही तो कर्ण को दानवीर नही कहते , फिर भी पुण्य को एक नई परिभाषा देने के लिये आपको लघुकथा के लिये हार्दिक बधाइयाँ ।
आदरणीय तेजवीर सिंह जी, लघुकथा की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार.
आदरणीय मिथिलेश जी, पाप पुन्य की खूबसूरत व्याख्या करती सुंदर लघुकथा!हार्दिक बधाई!
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