For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल :- मैं शर्मिंदा नहीं अपने किये पर

मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन फ़ऊलुन

भले लिख दो,मिरा ग़म हाशिये पर
मैं शर्मिंदा नहीं अपने किये पर

अँधेरा इस क़दर फैला हुवा था
नज़र सबकी थी छोटे से दिये पर

मिरा कुछ बोझ हल्का हो गया है
मिरे बच्चों ने भी अब ले लिये पर

तुम्हारे हुस्न पर मिसरा लिखा था
कई शर्तें लगी थीं क़ाफ़िये पर

मिरी ग़ज़लो प सर धुंते हैं अपना
ये देंगे दाद मेरे मर्सिये पर

सभी शाइर समझ बैठे हैं उसको
किसी को शक नहीं बहरूपिये पर

"समर",ये लफ़्ज़ बे मतलब है कितना
हमारी जान सदक़े,शुक्रिये पर

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 719

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on August 13, 2015 at 10:37pm
जनाब श्री सुनील जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ, "बहरूपिये" वाले शैर पर आप चोक से गए थे,सुनील जी,अस्ल में मेरी ये ग़ज़ल 25 साल पुरानी है,उर्दू मुशायरों में ऐसे शाइरों को सुना जो अस्ल में शाइर ही नहीं थे,किसी को उस्ताद बनाकर उसकी ग़ज़लें अपने नाम से पढ़ने वालों की भरमार हो गई थी,उस मंज़र को देखकर यह शैर कहा था ।
Comment by shree suneel on August 12, 2015 at 11:40pm
बहुत हीं उम्दा ग़ज़ल दी है आपने आदरणीय समर कबीर सर जी.
भले लिख दो,मिरा ग़म हाशिये पर
मैं शर्मिंदा नहीं अपने किये पर.. बहुत ख़ूब मतला
मिरा कुछ बोझ हल्का हो गया है
मिरे बच्चों ने भी अब ले लिये पर... क्या बात है
सभी शाइर समझ बैठे हैं उसको
किसी को शक नहीं बहरूपिये पर... ओह! ये शे'र! हाँ.. ठीक कहा आपने आदरणीय.
हार्दिक हार्दिक बधाइयाँ आपको इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए सर जी. सादर
Comment by Samar kabeer on August 12, 2015 at 11:24pm
जनाब लक्ष्मण धामी जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on August 12, 2015 at 11:22pm
जनाब मनोज कुमार अहसास जी,आदाब,मरने वाले की तारीफ़ में लिखी गई रचना को मर्सिया कहते हैं,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on August 12, 2015 at 11:18pm
जनाब गिरिराज भंडारी जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on August 12, 2015 at 11:17pm
जनाब हर्ष महाजन जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on August 12, 2015 at 11:13pm
जनाब रवि शुक्ल जी, आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on August 12, 2015 at 11:10pm
जनाब मिथिलेश वामनकर जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 12, 2015 at 11:31am

आ0 समर भाई, इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई .

Comment by मनोज अहसास on August 11, 2015 at 5:04pm
आपकी ताज़ा ग़ज़ल पर बहुत दिल से नमन
खूबसूरत कलाम में अनेको बातें आपने पिरोई है
मर्सिये का अर्थ नहीं पता है हमे
बता देगे तो मेहरबानी होगी
आपकी ग़ज़ल के बारें में बहुत कुछ कहने का मन करता है
पर बस कहुगा नहीं
क्योंकि वो इससे खूबसूरत नहीं हो सकता
इनायत
सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service