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ग़ज़ल :- ज़िंदगी है या शगूफा या रब !

ग़ज़ल :- ज़िंदगी है या शगूफा या रब !

अब तो कम खुद पे भरोसा या रब ,

ज़िंदगी  है  या  शगूफा  या   रब |

 

लड़की रस्सी मदारी सब तू है ,

खेल नज़रों का है धोखा या रब |

 

चाँद तारों का रात भर जगना ,

खूब हमपर तेरा पहरा या रब |

 

तू कि पढता है इसे फुर्सत से ,

आदमी दर्द का परचा या रब |

 

इश्क आसान हो गया बेहद ,

बुझ रहा दर्द का दरिया या रब |

 

खुशनुमा चाँद दूर की रोटी ,

दिन हकीकत का आईना या रब |

 

हम तो बजते तुम्हारी मर्जी से ,

हाथ बच्चे के झुनझुना या रब |

 

(अभिनव अरुण)

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Comment

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Comment by Abhinav Arun on April 12, 2011 at 10:53am
बागी जी आपके इशारे का शुक्रिया या ' छूट गया था | अब ठीक हो गया है |

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 10, 2011 at 11:58am

चाँद तारों का रात भर जगना ,

खूब हमपर तेरा पहरा या रब |

 

वाह वाह क्या उम्द्दा ख्यालात, सुंदर ग़ज़ल पर बधाई स्वीकार करे | ५ वे शेयर पर नजरेशानी की जरूरत है |

कृपया ध्यान दे...

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