For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कविता :-खुली किताब हूँ मैं

कविता :-खुली किताब हूँ मैं

खुली किताब हूँ मैं

तुम कभी खुलकर इसे पढ़ना

संवरना रूबरू इसके

और अपने रूप को गढना |

 

ये आईना बनेगा

तुम मुझे देखोगी अपने में

वही एक शख्स हूँ मैं

तुम जिसे पाती थी सपने में |

 

ये अक्षर भाव सारे

ये सभी सारे तुम्हारे हैं

चमकती ज्ञान गंगा

चाँद ये तारे तुम्हारे हैं |

 

मैं तुममे हूँ तू मुझसे है

ये सृष्टि हमसे तुमसे है

सुखद ये पल ये अनुभव

रंग गुलाबी रंग तुमसे है |

 

ये पन्नों का पलटना

देखो ऋतुओं का बदलना है

तुम्हारी  उंगली रखने से

नरम शब्दों का गलना है |

 

पिघलती मोम सी स्याही

बगावत को बुलाती है

रवायत को ये धोखा है

मोहब्बत गुनगुनाती है |

 

गरम सांसो का छलना

गर्द गुबारों का ढल जाना

सभी कहते हैं तुमसे

आज पढ़ लो और कल जाना |

 

खुली किताब हूँ मैं

तुम कभी खुलकर इसे पढ़ना

संवरना रूबरू इसके

और अपने रूप को गढना |

            (अभिनव अरुण)

 

 

 

 

Views: 562

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on April 27, 2011 at 9:34am
भूल से एक कमेन्ट मिट गया है उस दोस्त के प्रति खेद है .... और शुक्रिया दरअसल नया पेज सेट अप समझ में नहीं आया |
Comment by Abhinav Arun on April 26, 2011 at 3:15pm
bhaaee sahil jee, dheeraj jee ,virendra jee  aap sabka abhaar tippane ke liye aapka sneh bana rahe yahee kamna hai |
Comment by Dheeraj on April 25, 2011 at 11:59am
अरुण जी, आपकी कविताये और इनमे छुपे भाव सच में दिल के भावनाओ को झकझोर जाते है, जाने क्यों पर आपकी हर कविता जिन्दगी से जुडी लगती है , यक़ीनन आपके लेखनी से निकले हर भाव तहे दिल से सराहनीय होती है ..... भगवान आपके लेखनी क्षमता को यु ही बरक़रार रखे
Comment by Veerendra Jain on April 25, 2011 at 11:00am

ये पन्नों का पलटना

देखो ऋतुओं का बदलना है

तुम्हारी  उंगली रखने से

नरम शब्दों का गलना है |

 

पिघलती मोम सी स्याही

बगावत को बुलाती है

रवायत को ये धोखा है

मोहब्बत गुनगुनाती है |

 

waah waah...Arun ji..bahut hi badhiya kavita...hardik badhai is khoob soorat kruti ke liye aapko...

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service