बह्र : २२ २२ २२ २२
श्रोडिंगर ने सच बात कही
हम जिन्दा भी हैं मुर्दा भी
इक दिन मिट जाएगी धरती
क्या अमर यहाँ? क्या कालजयी?
उस मछली ने दुनिया रच दी
जो ख़ुद जल से बाहर निकली
कुछ शब्द पवित्र हुए ज्यों ही
अपवित्र हो गए शब्द कई
जिस दिन रोबोट हुए चेतन
बन जाएँगें हम ईश्वर भी
मस्तिष्क मिला बहुतों को पर
उनमें कुछ को ही रीढ़ मिली
मैं रब होता, दुनिया रचता
इस से अच्छी, इस से जल्दी
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय गिरिराज जी
बहुत बहुत शुक्रिया मनोज कुमार जी। अन्यथा लेने जैसी कोई बात नहीं है। मैं अपनी बात कह रहा हूँ तो आपको भी अपनी बात कहने का पूरा अधिकार है।
आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , खूबसूरत ग़ज़ल कही है , नया चिंतन , नई सोच के साथ ।
कुछ शब्द पवित्र हुए ज्यों ही
अपवित्र हो गए शब्द कई -- क्या बात है , सलाम इस सोच को । गज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।
आदरणीय जवाहर लाल जी, बात को बहुत सारे तरीकों से कहा जा सकता है, ये सच है। लेकिन मुझे कौन से तरीके से कहना है ये तो मैं ही चुनूँगा न। :)
आदरणीय मिथिलेश जी,
मुझे तो आज तक इस ब्रहांड के, इस दुनिया के होने का ही तात्पर्य समझ में नहीं आया। :)
किसी बात को किन तरीकों से कहा जा सकता है... मैं तो यही समझ पाया बाकी तो गुनीजन हैं ही...
आदरणीय बड़े भाई धर्मेन्द्र जी शेर का तात्पर्य तो मैं समझ गया मगर इसके होने का तात्पर्य नहीं समझा. कहा जाता है कि हम ब्रह्म है इस हिसाब से सभी रब ही तो है तब
किसने रोका, दुनिया रच दो
इस से अच्छी, इस से जल्दी
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया राजेश कुमारी जी
शुक्रिया आदरणीय दिनेश कुमार जी
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