बह्र : २१२२ १२१२ २२
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उनकी आँखों में झील सा कुछ है
बाकी आँखों में चील सा कुछ है
सुन्न पड़ता है अंग अंग मेरा
उनके हाथों में ईल सा कुछ है
फैसले ख़ुद-ब-ख़ुद बदलते हैं
उनका चेहरा अपील सा कुछ है
हार जाते हैं लोग दिल अकसर
हुस्न उनका दलील सा कुछ है
ज्यूँ अँधेरा हुआ, हुईं रोशन
उनकी यादों में रील सा कुछ है
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय जवाहर लाल जी
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय रवि शुक्ला जी
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय गिरिराज जी
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया कान्ता जी
शुक्रिया महिमा जी
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय मिथिलेश जी
तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ जनाब समर साहब।
वाह वाह! आदरणीय धर्मेन्द्र कुमार जी!
आदरणीय धर्मेन्द्र जी । वाह बहुत खूब ग़ज़ल कही है आपने अंग्रेजी शब्द जो हमारी जुबान में घुल मिल गये है उनका सुन्दर प्रयोग किया है । श्ोर दर शेर दाद कुबूल करें । सादर
उनकी आँखों में झील सा कुछ है
बाकी आँखों में चील सा कुछ है --- आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , खूबसूरत मतला और खूबसूरत गज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।
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