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इस ज़मीं के ख़ुल्द हो जाने की चर्चा आम है
ये न समझे कोई मैं भी हमज़बाँ हो जाऊँगा
देखती हैं एकटक ऐसे मुझे नज़रे रक़ीब
सोचते हैं मैं भी उनसा बदगुमाँ हो जाऊँगा -- आ. शिज्जु भाई पूरी गज़ल बहुत लाजवाब कही है , दिली मुबारक बाद कुबूल करें ॥
देखती हैं एकटक ऐसे मुझे नज़रे रक़ीब
सोचते हैं मैं भी उनसा बदगुमाँ हो जाऊँगा --- उला मे कर्ता चूँकि नज़रे हैं , इस लिये सानी मे शायद सोचतीं हैं कहना सही होगा , सोच लीजियेगा , मै कंफर्म नहीं कह पा रहा हूँ ।
वाह बहुत ही सुन्दर लाजबाव ....गजल ....बहुत बहुत बधाई आपको
आदरणीय शिज्जू जी बहुत दिनों बाद अपनी रचना तक पहुंचा ..आज कल समयाभाव के कारन इस मंच पर ज्यादा समय नहीं दे पा रहा हूँ ..एक निवेदन कर रहा हूँ ..आज आपने उर्दू के ऐसे बहुत से शब्द प्र्योग किये हैं उनका अर्थ भी हमेशा की तरह आप लिख देते तो समजने में आसानी होती ..इस बार आपकी रचना के रसास्वादन से मैं खुद को वंचित महसूस कर रहा हूँ ..आप मेरी बात को अन्यथा मत लीजियेगा ..आपकी प्रतिक्रिया मुझे अपनी रचना पर इंतज़ार रहता है और इस मार्गदर्शन से भी मैं एक मुद्दत से वंचित हूँ ..रचना पर हार्दिक शुभकामनाओं के साथ सादर
रचना की सराहना के लिए आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय शिज्जु भाई जी, शानदार ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद और मुबारकबाद कुबूल फरमाएं.
अ० शिज्जू जी
बहुत बढ़िया गजल हुयी है . जय हो .
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