देशों की चमचमाती हुई राजधानियाँ
हर आकाशगंगा के केन्द्र में
बैठा हुआ एक ब्लैक होल
किसी गाँव के सूरज से करोड़ों गुना बड़ा
अपने आसपास मौजूद तारों को
अपने इशारों पर नचाता हुआ
उसके पास खुद का कोई प्रकाश नहीं है
फिर भी वो चमचमा रहा है लगातार
उनके प्रकाश से
जो शिकार हो रहे हैं
उसकी कभी न खत्म होने वाली भूख का
ऊष्मागतिकी का तीसरा नियम मुझे सबसे ज़्यादा कष्ट देता है
जिसके अनुसार किसी बंद व्यवस्था की सम्पूर्ण अराजकता
हमेशा बढ़ती है
ब्लैक होल
दुनिया की सबसे अराजक व्यवस्था है
फिर भी ये बाहर से देखने पर
ब्रह्मांड की सबसे शालीन व्यवस्था लगती है
क्योंकि इसे अपना बाहरी तापमान नियंत्रित रखना आता है
ये सूचनाएँ नष्ट तो नहीं कर सकता
लेकिन सूचना के अधिकार से प्राप्त सूचनाओं से
इसके भीतर की कोई भी जानकारी
बाहर नहीं आ सकती
लेकिन मैं निराश नहीं हूँ
मुझे पूरा भरोसा है कि एक न एक दिन
हम दिक्काल में सुरंगें बनाकर
बाहर ले ही आएँगें
इसके भीतर भरी जानकारियाँ
भले ही ऐसा होने पर
व्यवस्था में आम आदमी का भरोसा जड़ से उखड़ जाय
अँधेरे में किया गया विश्वास भी
आख़िर अंधविश्वास ही होता है
-------------
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय सौरभ जी, इस रचना पर आने और अपने विचार रखने के लिए आपका तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ। आपकी बात बिल्कुल सही है ये पंक्तियाँ सैद्धांतिक रूप से ग़लत हैं।
उसके पास खुद का कोई प्रकाश नहीं है
फिर भी वो चमचमा रहा है लगातार
उनके प्रकाश से
जो शिकार हो रहे हैं
उसकी कभी न खत्म होने वाली भूख का
मैं इनमें बदलाव करूँगा।
दर’असल ब्लैक होल के चारों तरफ एक प्रभामंडल होता है जो ग्रेविटेशनल लेंसिग के प्रभाव के कारण बनता है। मैं लिखना कुछ और चाहता था और लिख कुछ और गया। त्रुटि की तरफ ध्यान दिलाने के लिए धन्यवाद।
वैज्ञानिक शब्दावलियों के प्रयोग से रचना-कौतुक करना आपका प्रिय चसका रहा है, आदरणीय धर्मेन्द्रजी. इस प्रस्तुति में भी आपने अपने प्रिय विषय ’व्यवस्था-परिवर्तन’ को शाब्दिक किया है.
लेकिन मैं निराश नहीं हूँ
मुझे पूरा भरोसा है कि एक न एक दिन
हम दिक्काल में सुरंगें बनाकर
बाहर ले ही आएँगें
ऊष्मा-गतिकी (Thermodynamics) के तीसरे सूत्र का तो कमाल का उपयोग हुआ है .. :-))
ऊष्मागतिकी का तीसरा नियम मुझे सबसे ज़्यादा कष्ट देता है
जिसके अनुसार किसी बंद व्यवस्था की सम्पूर्ण अराजकता
हमेशा बढ़ती है
और, ये पंक्तियाँ भी कितनी सही हैं, और कितनी प्रासंगिक भी ! --
अँधेरे में किया गया विश्वास भी
आख़िर अंधविश्वास ही होता है
उपर्युक्त पंक्तियों के सापेक्ष यह भी सत्य है कि कुछ समूह विशेष हैं, जो ’ब्राह्मणवाद’ के परोकार हैं. समाज में विशिष्ट ’ब्राह्मणवादी-प्रवृति’ के नेताओं के प्रभावी होने का षडयंत्रकारी कारण हैं.
लेकिन कृष्ण-विवर (ब्लैक होल) को लेकर निम्नलिखित पंक्तियाँ सैद्धांतिक रूप से गलत हैं. या, पुनः देख लिये जाने योग्य हैं -
उसके पास खुद का कोई प्रकाश नहीं है
फिर भी वो चमचमा रहा है लगातार
उनके प्रकाश से
जो शिकार हो रहे हैं
उसकी कभी न खत्म होने वाली भूख का
रेखांकित पंक्ति तो किसी उपग्रह केलिए उचित संभव है, आदरणीय ! कृष्ण-विवर तो अव्वल प्रतीत ही नहीं होता. क्यों कि इसकी ’गुरुता’ इतनी अधिक (अत्युच्च) होती है कि यह प्रकाश की कोई तरंग तक परावर्तित नहीं करता. तथाकथित रूप से ’सोख’ लेता है. यही कारण है कि यह दृष्यमान ही नहीं होता.
या, आप कुछ विशेष कहना चाह रहे हैं ?
आपकी इस कविता के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ ..
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय मिथिलेश जी
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय श्याम नारायण जी
तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ आदरणीया प्रतिभा जी
आदरणीय बड़े भाई धर्मेन्द्र जी, बहुत ही शानदार प्रस्तुति हुई है. इस सशक्त रचना पर हार्दिक बधाई
इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई |
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