जंगल बदल चुके हैं
बस्तियों में या फिर
फॉर्म हाउसेस में
लिहाज़ा अब
जंगल में
हरे भरे फलों से लदे
पेड़ नहीं मिलते
दवाइयों वाली
घनी झाड़ियाँ और
और वनस्पतियां भी नहीं मिलती
यहां तक कि
जानवरों का राजा शेर
भी इधर उधर घूमता
नहीं मिलता
वह अब सर्कस या
चिड़ियाघर के पिंजड़े
में मिलता है
आज कल
जंगल का राजा
कुत्ता है
उसके भी गले में चेन रहती है
जो
गरीबों व मज़बूरों पे खूब भोकता है
और
चोरों को देख कर पूछ हिलाता है
कौवे जंगल के पेड़ों पे नहीं
संसद और विधान सभा के
गुम्बदों पे काँव - काँव करते पाये जाते हैं
गौरैया
तो होती ही शिकार करने की खातिर
अब तो उसकी प्रजाति ही लुप्त होने का
खतरा मंडरा रहा है
बुलबुल - भी कम चहकती है
डर के मारे
लिहाज़ा - गौरैया और बुलबुल को तो
भूल ही जाओ
हाँ , गैंडे जरूर
उसी शान से
जंगल की जगह
राज पथ पे अरर्राते
देखे जा सकते हैं
उहें क्या फर्क पड़ता है
कि
वे जंगल में हैं
या राजपथ पे
लोमड़ियों ने कुत्तों के साथ दोस्ती कर ली है
लिहाज़ा वह भी खुश है
सियार रंग बदल बदल के इन लोगों
की हाँ में हाँ मिलाता है
गिरगिट रंग बदल बदल के
फार्म हाउसेस की
लताओं पे
चढ़ता उतरता रहता है
लिहाज़ा दोस्त
जंगल की अपनी
पुरानी अवधारणा को बदल डालो
जंगल में
पेड़ पौधे
और जानवर मत ढूंढो
क्यूँ की ये खतरनाक जानवर
इंसान की खतरनाक फितरत के
आगे दम तोड़ चुके हैं
मुकेश इलाहाबादी --------------
मौलिक और अप्रकाशित
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