2122-- 1122 --1122 --112 |
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इस तरह आज हमें होश में आने का नहीं |
मुफ्त आई है मगर यार पिलाने का नहीं |
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सिर्फ रोता हुआ हर गीत सुनाने का नहीं |
जिंदगी नाम है जीने का, चलाने का नहीं |
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तुमको मंगता है उजाला तो सितारों से कहो |
रौशनी को, मेरे घर आग लगाने का नहीं |
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देख बिगड़ी हुई सूरत को, कहा दरपन ने |
फिर कभी भीड़ में यूँ आँख दबाने का नहीं |
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यार गुस्से से पिघल जाए तो ये अच्छा है |
आँसुओं से कभी ये जुल्म गलाने का नहीं |
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तुमको सक्सेस जो होने का तो कुछ काम करो |
सिर्फ अल्लाह से इक आस लगाने का नहीं |
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गंध हो जिसमें किसी के लहू की फैली हुई |
ऐसी दौलत को कभी हाथ लगाने का नहीं |
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आज बेटी ने दिया आसरा तो मैं समझा |
सिर्फ बेटों के लिए हाथ उठाने का नहीं |
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फैसला आज मेरे प्यार का ऐसे होगा |
आज जाने का नहीं या कभी आने का नहीं |
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मेरा सपना था इसी प्लॉट पे घर करने का |
सारी दुनिया से अलग गाँव बसाने का नहीं |
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Comment
आदरणीय गिरिराज सर, इस प्रयास पर आपका अनुमोदन आश्वस्त करता हुआ सा है. ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार, बहुत बहुत धन्यवाद.
आदरनीय मिथिलेश भाई , एक नये अंदाज मे बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है , दिली बधाइयाँ स्वीकार कीजिये ।
आदरणीय कृष्ण भाई जी, ग़ज़ल पर मुखर अनुमोदन सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद
आदरणीया प्रतिभा जी ग़ज़ल पर आपका मुखर अनुमोदन पाकर आनंदित हूँ. ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद
आदरणीय विजय सर आपने ग़ज़ल की सराहना के साथ साथ ही बहुत बढ़िया मिसरा कहा है, आपका आभार व्यक्त करते हुए उस मिसरे पर एक शेर आपको समर्पित -
जो 'विजय' मिल गई खुशियों को,..... तो खुशियों ने कहा
जिंदगी हंस के बिताने का है.................... रोने का नहीं
ग़ज़लों में आपकी पकड़ शानदार है , हर ग़ज़ल नयापन लिए होती है बहुत शुभकामनाएँ और बधाई आपकोआदरणीय मिथिलेश जी
आदरणीय रवि जी, ग़ज़ल के मुखर अनुमोदन, सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद
शहरयार साहब का शेर पढ़कर आनंद आ गया.
आदरणीया कांता जी, ग़ज़ल पर मुखर अनुमोदन पाकर आनंदित हूँ. ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद
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