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"चिंगारियां"- (लघु कथा)

"चिंगारियां" - (लघु कथा)

"और ये देखो मनोविज्ञान और समाजशास्त्र के वो नोट्स जो तुमने मुझे सिविल सर्विस परीक्षा की तैयारी के लिए मुझे दिये थे।इन्हें आज भी मैं संभाल कर रखे हुए हूँ। "- अस्त-व्यस्त से कमरे में वीरेंद्र ने पाँचवीं सिगरेट से एक लम्बा सा कश लेते हुए कहा- " सुमित , तुमने मेरे अंदर भी एक चिंगारी पैदा कर दी थी सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के लिए.... और विश्वास करो... वह एक आग में भी तब्दील हो गई थी तुम्हारे नियमित सान्निध्य में। तुम एक सच्चे दोस्त और मार्गदर्शक बने रहे मेरे..... असीम लगन और मेहनत से तुम तो आई.ए.एस. अधिकारी बन गये। लेकिन....."

"...लेकिन क्या ? हो क्या गया था ?"- सुमित ने कक्ष की दीवारों पर लगे चित्र और पोस्टरों पर नज़रें दौड़ाकर हैरानी से पूछा।

"मित्र, एक बार तुम्हारे यही महत्वपूर्ण नोट्स मेरे एक मुँह लगे परिचित ने देख लिये तो ज़िद करके वह इन्हें ले गया।.... दो माह बाद जब इन्हें
वापस लेने मैं स्वयं उसके किराए वाले कमरे पर पहुंचा....तो उसने एक ऐसी मायावी चिंगारी उत्पन्न कर दी मेरे अंदर जिसकी परिणति भीषण आग के रूप में होने में देर न लगी। मैं..... मैं स्वयं उन लपटों में उससे भी ज़्यादा उलझ गया...और आज तुम्हारे सामने इस हाल में हूँ ...... अकेला......अविवाहित !"

_मौलिक एवं अप्रकाशित
_शेख़ शहज़ाद उस्मानी
शिवपुरी म.प्र.

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 22, 2015 at 11:29pm
हौसला बढ़ाने के लिए बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद आदरणीय
Tej Veer Singh जी
Comment by TEJ VEER SINGH on September 22, 2015 at 8:52pm

हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उसमानी   जी!बहुत सुन्दर  लघुकथा!

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