For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

डाकखाने का डाक बाबू 

जब अपनी साइकिल पर
चिट्ठियों का थैला लेकर
गाँव की गलियों में आता
तो घर की चौखट पर
अधखुले दरवाजे के पीछे
घूँघट की ओट से दो आँखे
डाक बाबू की राह तकती

आज तो उसके नाम कि भी
जरूर कोई डाक होगी
पुकारेगा डाक बाबू
आज उसका नाम
बलम परदेसी ने
कोई चिट्ठी भेजी होगी

उम्मीद का चिराग
बुझ जाता हैं
जब डाकबाबू दरवाजा
पार करके दूसरी चौखट
पर पहुँच जाता हैं

खटाक से वो अधखुला दरवाजा 

फिर बंद हो जाता हैं

कल फिर चौखट पर
घूँघट के पीछे छुपी
दो जोड़ी आँखे
राह तकेंगी डाक बाबू की
कल फिर इन्तजार होगा
बरस से तरसाने वाली
एक निगोड़ी चिट्ठी का

.

"मौलिक तथा अप्रकाशित" 
रजनी गोसाईं

Views: 504

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rajni Gosain on September 24, 2015 at 5:23pm

कविता का गहनता से अवलोकन करने  तथा प्रोत्साहित करती टिप्पणी के  लिए तहे दिल से आभार आदरणीय कांता रॉय जी 

Comment by kanta roy on September 24, 2015 at 1:30pm
दो जोडी़ आँखें राह तकेंगी .... बहुत ही सुंदर हुआ है ये राह का तकना । डाक बाबू अब आॅफिसियल चिठ्ठी ही लाते है । आँखों में शर्म की लाल डोरी लिये ,उन्हीं से अपने प्रियतम की चिठ्ठी बँचवाना । हाँ ,वो भी एक जमाना हुआ करता था सुहाना । बहुत ही सुंदर रचना हुई है आदरणीया रजनी जी । बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Rajni Gosain on September 24, 2015 at 12:13pm

आदरणीय प्रतिभा पाण्डेय  जी प्रोत्साहन तथा सराहना के लिए  हार्दिक आभार 

Comment by Rajni Gosain on September 24, 2015 at 12:10pm

कविता पर आगमन तथा सराहना के लिए हार्दिक आभार आदरणीय डा. गोपाल नारायन  श्रीवास्तव जी 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 23, 2015 at 8:41pm

कुछ पुरानी फिल्मे जेहन में उभर आयीं  आपने अवचेतन को जगा सा दिया.

Comment by pratibha pande on September 23, 2015 at 5:46pm

आदरणीय रजनी जी , सुन्दर रचना के लिए तहे दिल से बधाई स्वीकार करें ,  

Comment by Rajni Gosain on September 22, 2015 at 6:47pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी कविता का अवलोकन तथा प्रोत्साहित करने के लिए आपका ह्रदय से आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 22, 2015 at 5:10pm

आदरणीया रजनी जी, बहुत सुन्दर प्रस्तुति है. आज के ई मेल युग में खो गई चिट्ठियों और डाकबाबू की प्रतीक्षा को फिर से जीवंत कर दिया. आपकी किसी पहली प्रस्तुति से गुजरते हुए एक नयेपन का अहसास सुखद है. आपका मंच पर स्वागत है. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service