नवरात्र के दिनों में सामने वाले घर में रहने वाली अधेड़ आयु की स्त्री के हाथों में लाल कांच की चूड़ी देखकर बिल्डिंग में रहने वाली सभी महिलाये चौंक गई, " ओह, तो इसका मतलब इनके पति हैं"! वह महिला अपने दो युवा बच्चों के साथ इस फ्लैट में रहने नई नई आई थी! प्रायः वह महिला कोई साज श्रृंगार नहीं करती थी जिससे सभी ने मन ही मन ये विचार बना लिया था वह शायद विधवा हैं लेकिन नवरात्र की पूजा के दिनों में साज श्रृंगार से पूर्ण उस महिला को देखकर अन्य महिलाओं के मन में खलबली मच गयी! आखिर पूछ ही लिया "आपके पति.......?" उन्होंने धीमे से मुस्कुराते हुए कहा" हैं, पर विदेश में ही बस गए हैं लेकिन हमारा तलाक नहीं हुआ हैं! अब देवी पूजा में सुहागन होते हुए एक सुहागन की तरह ही पूजा करती हूँ!"
उत्तराखंड में नाक में पहने जाने वाली लोंग सुहाग का प्रतीक मानी जाती है! वहां एक बूढी नानी देखी थी जिनकी नाक में सोने की बड़ी सी, लाल रंग का नग लिए लोंग चमचमाती रहती थी! उनके पति का शहर में बीस बरस से कोई पता नहीं था! लेकिन उनके जीवित होने की आस में उन्होंने अपने उस सुहाग के प्रतीक को नहीं निकाला था! एक दिन उन्हें पता चला उनके पति की तो कब की मृत्यु हो गयी ! यह सुनकर सबसे पहले उन अस्सी वर्षीय बूढी नानी ने अपनी नाक की लोंग निकाल दी तथा अपने बच्चों से कहा जब वह मरे तो ये लोंग उनके मुँह में डाल दे! ये वास्तविक जीवन के उदाहरण हैं! अगर आप लोगो ने शर्मीला टैगोर राजेश खन्ना द्वारा अभिनीत फिल्म 'अमर प्रेम' देखी होगी तो फिल्म के अंत में एक दृश्य हैं जिसमे शर्मीला टैगोर अपने पति की मृत्यु के पश्चात अपनी शंख की चूड़ियाँ तोड़कर गंगा में डाल देती हैं! वह पति जो कब का छोड़ चुका होता है तथा परित्यक्ता होने के बाद वह वेश्या बन जाती हैं! सोलह श्रृंगार के उपरान्त भी वह अपनी शंख की चूड़ियाँ जोकि बंगाली समाज में सुहाग का प्रतीक मानी जाती हैं, हाथों से नहीं निकालती हैं!
वास्तविक हो या फ़िल्मी इन उदाहरणों में कही भी इन स्त्रियों पर ये जेवर पहनने की मजबूरी थोपी नहीं गयी! वह चाहती तो जिस पति ने उन्हें छोड़ दिया उसके प्रतीक इन निशानियों को वो हटा सकती थे! यह स्त्री की समर्पण,श्रद्धा, अदृश्य प्रेम की भावना ही हैं जिसने हमारे समाज के पारिवारिक ढांचे को मजबूत बनाया हैं तभी भारत में स्त्री शक्ति की पूजा होती हैं! गहने, आभूषण स्त्री के सौंदर्य को बढ़ाते हैं लेकिन भारतीय समाज में आभूषण एक स्त्री के लिए अलग ही महत्व रखते हैं! पुरुष बलशाली हैं, मुक्त हैं मगर उसका अस्तिव स्त्री पर ही टिका हुआ हैं! ये उद्धरण बताते हैं ये सुहाग चिन्ह, गहने बेड़िया नहीं हैं बल्कि पुरुष के जीवित होने का प्रमाण हैं!
मौलिक व् अप्रकाशित
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दिल को छू वाली इस शानदार रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर
लेख को गहनता से पढ़ने तथा उत्साहित करती टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार आदरणीय कांता रॉय जी!
" ये सुहाग चिन्ह, गहने बेड़िया नहीं हैं बल्कि पुरुष के जीवित होने का प्रमाण हैं! " ---वाह !!!! गज़ब !
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति हुई है ये।
भारतीय समाज में जेवर स्नेह और समर्पण का प्रतिक है जिससे लोग आतंरिक श्रद्दा के और समर्पण के वशीभूत होकर ही धारण करते है।
वन्दनीय प्रस्तुति हुई है आपकी यह आदरणीया रजनी जी।
हृदयतल से बधाई स्वीकार करें।
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