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मैं आज अपने दिल के ज़ज़्बात भर कहूँगा

फ़ाइलातुन मफ़ऊल फ़ाइलातुन
2212 122 2212 122

मैं आज अपने दिल के ज़ज़्बात भर कहूँगा।
तुम पास आज बैठो मैं बात भर कहूँगा।

तुम मुस्कुराके सुनना, मुझे गुनगुनानें देना।
ग़ज़लों में इस हृदय के हालात भर कहूँगा।

ज़ुल्फ़ों के बादलों से ये चाँद झाँकने दो।
तुम चाँदनी बिखेरो मैं रात भर कहूँगा।।

छलका रही हो मदिरा,मयकदे नज़र से।
मधु रस की सिर्फ इसको बरसात भर कहूँगा।।

बेसुध हुआ हूँ ऐसे जैसे कोई शराबी।
मदिरा ए हुश्न की मैं सौगात भर कहूँगा।।


मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Madan Mohan saxena on September 30, 2015 at 2:16pm

मैं आज अपने दिल के ज़ज़्बात भर कहूँगा।
तुम पास आज बैठो मैं बात भर कहूँगा।

तुम मुस्कुराके सुनना, मुझे गुनगुनानें देना।
ग़ज़लों में इस हृदय के हालात भर कहूँगा।

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 30, 2015 at 11:57am
आदरणीय जयनीत जी मैंने आपके सुझाव पर दोषों को दूर कर लिया है।
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 30, 2015 at 10:17am
आदरणीय जयनीत जी आपकी बात बिल्कुल सही है; इनमें कमियाँ हैं।।
Comment by जयनित कुमार मेहता on September 30, 2015 at 10:02am
आदरणीय पंकज जी, शानदार ग़ज़ल हुई है.. पर मुझे चौथे व पांचवे शेर के पहले व दूसरे मिसरे में मुझे लय की कमी महसूस हुई, कृपया एक बार तक्तीअ कर लें..

(मेरी बाते अन्यथा न लीजियेगा, मैं अभी सीख ही रहा हूँ)

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