कभी अतीत फंद में ,कभी भविष्य द्वन्द में
खुद को ढूँढती फिरूँ कूप कोई अंध में
शब्द ठिठके से खड़े ,भाव बहने पे अड़े
अश्रु भी लो अब यहाँ ,बन गए जिद्दी बड़े
अब रुकेंगे ये कहाँ छन्द के किसी बंद में
खुद को ढूँढती फिरूँ कूप कोई अंध में
प्रेम में रहस्य क्या ,जो छिपा वो प्रेम क्या
प्रेम हो कुछ इस तरह ,उदय रवि लगे नया
खुल जाय हर इक गिरह, मुस्कान एक मंद में
खुद को ढूँढती फिरूँ कूप कोई अंध में
ह्रदय धरा कभी हरित ,मोह से कभी द्रवित
भाव हैं सभी विषम ,मन खड़ा बड़ा भ्रमित
कैसे मन रहे ये सम शोक में आनंद में
खुद को ढूँढती फिरूँ कूप कोई अंध में
मौलिक व् अप्रकाशित
Comment
आदरणीय डॉ कंवर करतार जी आपकी सराहना व् उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार
आदरणीया गीत रचना बहुत सुन्दर हुई है , आपको हार्दिक बधाइयाँ । कुछ पंक्तियों में गेयता की कमी लग रही है शायद मात्राओं और कलों का और खयाल रखना चाहिये था ॥
प्रेम में रहस्य क्या ,जो छिपा वो प्रेम क्या
प्रेम हो कुछ इस तरह ,उदय रवि लगे नया
खुल जाय हर इक गिरह, मुस्कान एक मंद में
खुद को ढूँढती फिरूँ कूप कोई अंध में ,,,,,,,,,,,,,,,सही है प्रेम में कोई रहस्य नही होता ,अगर कोई रहस्य है तो प्रेम नही है ,,,बधाई आ. pratibha pande जी |
वहन प्रतिभा ,अति सुंदर कविता के लिए शत शत बधाई कबूल करें I
शब्द ठिठके से खड़े ,भाव बहने पे अड़े
अश्रु भी लो अब यहाँ ,बन गए जिद्दी बड़े
अब रुकेंगे ये कहाँ छन्द के किसी बंद में
खुद को ढूँढती फिरूँ कूप कोई अंध में
------वाह वाह --
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