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"आजकल सर काफी बदल गए हैं ,नोटिस किया ?"

तीन चार रोलिंग चेयर , कहने वाली की तरफ घूम  गईं  I

"हाँ ss ...मै भी   देख रही हूँ ,पहले तो एक्स रे जैसी  आँखें ,ऊपर से नीचे तक हमें  घूरती  रहती थीं I पर आज कल तो एकदम झुकी रहती हैं Iक्या हो गया मशीन को ?"

"वैरी फनी ,पर सच में यार ,कुछ भी ख़ास पहनो ,बार बार अपने केबिन  में बुला लेते थे  बहाने से "I

"हाँ ss ..  इतना कांशस कर देते थे न कभी कभी , पर अब तो गुड मॉर्निंग का जवाब भी नज़रें नीची कर के देते हैं, चक्कर क्या है ?"

"मुझे पता है "  ये रोलिंग चेयर वाली नहीं थी ,झाड़ू वाली थी I

"क्या पता है ?" सब रोलिंग चेयर  उस तरफ घूम गईं I

"साहब की बेटी तीन महीने की ट्रेनिंग के लिए अपने ऑफिस में आने वाली है ,और फिर शायद  यहीं पक्की भी लग जाय  "I

"ओss हो ss..,तो ये बात है ..,हूँ ss ...."इस लम्बी 'ओहो' और' हूँ '..में सभी शामिल थीं ,नीची चेयर वाली,ऊँची चेयर वाली ,झाडू वाली ..I

मौलिक व् अप्रकाशित 

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 23, 2015 at 10:31am

घर के सदस्य के आगे शरारत करना बंद हो जाता है वरना आदमी आदत के अनुसार हरकत/प्रतिक्रिया करते अक्सर देके जाते है | सुंदर लघु कथा के लिए बधाई 

Comment by pratibha pande on September 22, 2015 at 2:46pm

आदरणीय शेख शाहिद  जी  , कथा पर आकर टिपण्णी करने के लिए आपका आभार 

Comment by pratibha pande on September 22, 2015 at 2:43pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायण जी , कथा पर आकर उत्साह बढ़ाने के लिए आपका हार्दिक आभार  सादर 

Comment by pratibha pande on September 22, 2015 at 2:41pm

आदरणीय वीरेन्द्र वीर मेहता जी , अंतिम पंक्तियाँ ही कथा का मर्म हैं ,जहाँ पर एक पुरुष के व्यवहार के प्रति सभी महिलाओं का रोष एक सा है ,,कथा का शीर्षक' औरतें ' भी इसी लिए रखा गया है,  उत्साह वर्धन के लिए आपका आभार  सादर 

Comment by pratibha pande on September 22, 2015 at 2:35pm

आदरणीय ओमप्रकाश जी ,उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार 

Comment by pratibha pande on September 22, 2015 at 2:34pm

आदरणीय राजकुमारी जी ,आपने कथा के मर्म को  पकड़ कर सटीक टिपण्णी की है  . कार्य स्थल में इस तरह की हरकतों  का अनुभव  हर श्रेणी की महिला को होता है  ,  यहाँ पर सब सिर्फ 'औरतें' हैं  , कथा पर आने और उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार ,सादर 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 22, 2015 at 1:27pm
यह एक कड़वी सच्चाई है, जो हर जवान बेटी-बहु-नातिन-पोती-बहिन वाला भोगता है।
उद्देश्य पूर्ण करती सार्थक समसामयिक कृति।
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on September 22, 2015 at 10:10am
वाह। बेहतरीन आदः प्रतिभा जी। कथा लाजवाब बनी है बधाई स्वीकार करे। आदः रवि जी से सहमत अंतिम लाईनस कथा के प्रभाव को कम कर रही है सादर।
Comment by Omprakash Kshatriya on September 22, 2015 at 9:00am

जबरदस्त कटाक्ष . शानदार लघुकथा संवाद शैली में . बधाई आप को .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 21, 2015 at 8:45pm

प्रस्तुति  ने कथा  को मोहक बनाया . स्वागतम .

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