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दही हांडी [लघु कथा ]

"बहुत खुश दिख रहा है ,क्या हुआ रे ?"अपने दस साल के बेटे को नाचते हुए झुग्गी में घुसते  देख उसने पूछा I

"अरे ,मै आज हीरो बन गया I एक बारी में चढ़ के दही हांडी फोड़ दी  ,झक्कास ...सबने कंधे पर उठा लिया था Iखूब मिठाई परसाद मिला है  देखI"

"अरे वाह " उसके सर  के ऊपर से फिराकर माँ नेअपने  माथे के दोनों ओर उंगलियाँ चटका दीं I

"अब अगले साल भी ऐसे ही फोड़ दूंगा ,उसके अगले साल भी और .." ख़ुशी उसके सारे शरीर से फूट रही थी I  माँ को पकड़ कर वो गोल गोल घूमने लगा I

"अरे बाबा हर साल फोड़ना, पर अभी तंग मत कर  ,अज़ान का वक्त हो गया है" I

माँ ने दुपट्टा सर में रख लिया I दोनों हाथ दुआ में उठ गये और होंठ बुद्बुदाने  लगे  "हर साल और साल दर साल , आये ये जश्न, अमन चैन के साथ और मेरे बेटे के लिए खुशियाँ लाये ढेर सारी ऐसे ही  " I

एक हवा का झोंका आया और हौले  से उसे छूकर निकल गया ,मानो कह रहा हो  'आमीन'I

मौलिक व अप्रकाशित  

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Comment by shree suneel on September 15, 2015 at 9:25am
व्वाहह! बहुत ख़ूब. बहुत बढ़िया लघु-कथा आदरणीया प्रतिभा पांडे जी. मध्य और अंत ने प्रभावित किया. बधाई. . हार्दिक बधाई आपको इस सुन्दर लघु-कथा के लिए.
Comment by Ravi Prabhakar on September 15, 2015 at 9:07am

वाह । बहुत बढ़ीया । यही ताे सदीयों से हमारी संस्‍कृति रही है जिसकी जड़ें अब भी बहुत मजबूत एवं गहरी है । अत्‍यंत साकारात्‍मक एवं दिल को छूने वाली इस कथा के लिए आपको असीम शुभकामनाएं आदरणीय प्रतिभा जी ।

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