उलटी गंगा
बात जब तक घर में थी, सभी परिवार के मैंबर उसे समझा रहे थे । ये तुम गलत कर रहें हो ,रौशनी का ख्याल हमें पहले रखना चाहिए था, न कि अब हमसाया के घर की तरफ खिड़की रख कर । मगर वह अपनी फौजियों सी ज़िद छोड़ नहीं रहा था ।
पड़ोसी तो इस कि बारे पहले ही विरोध दर्ज करवा चुके थे, “क्योंकि कि बिल्डिंग के पीछे कोई अधिकारित रास्ता न होने की वजह से अपना हक भी नहीं बनता है” उसकी घर वाली ने कहा। पड़ोसी के पास अब क़ानूनी करवाई कि सिवाए कोई चारा नहीं रहा था । पर फिर भी उन्होंने यही ठीक समझा कि पहले मसला पंचायत में लाया जाए । जब कोई खुद को ज्यादा अक्लमंद और ऊम्र भर वो दूसरों को आर्डर ही देता रहा हो, उसके लिए किसी की बात मानना कठिन होता है ।
ज्यादातर लोगों को एक तो उसका बात करने का ढंग और दूसरा खुद को हर बात पर पूरी तरह पाक साफ बताना, घर वाले उसे अक्सर यही समझाते थे कि यहाँ तेरी फौजी वाली बात नहीं चलनी, हमें इन लोगों के साथ ही रहना है ।
“मैं इन कि साथ कैसे बात कर सकता हूँ, जो मेरे बराबर के नहीं है” ये बात वो हर शख्श से कहता रहता था । इसी लिए लोग उसे पसंद नहीं करते हैं ।
पड़ोसी की शिकायत पर पंचायत ने उसे अगले रोज़ गुरुद्वारे में बुला लिया । पंचायत मैंबरों के साथ साथ और भी बहुत से लोग गुरुद्वारे में इकठ्ठे हो गए , पर वह अब भी गलती मानने को तैयार नहीं था और पंचायत में आ कर भी अपनी बात से टस से मस नहीं हो रहा था ।
मगर अब जो उसके विरोध में आई ,वह उस घर की औरत थी , जो कह रही थी "मैं भी जाट की पुत्री हूँ, देखती हूँ कैसे आप इस खिड़की को बंद नहीं करते" , उसकी तरफ ध्यान न देते हुए, वह उल्टा पंचायत मैंबरों पर उसका साथ देने का इल्जाम धरने लगा, सभी इकठ्ठे हुए लोग भी अंदर से गुस्से से भरने लगे, बात किसे किनारे न लगती हुई देख,एक मैंबर ने उठ कर कहा, दार जी, आप फ़ौजी रहे हैं, आप ने देश की सेवा की हम सभी आप की इज़्ज़त करते हैं , मगर आज तो आप तो गलती पर गलती किये जा रहे हो ।
तब अचानक ही उस का अपना लड़का उठ खड़ा हुआ, सरपंच व मैंबर साहिबान से मुखातिब होते हुए उसने कहा, “ ये मेरा बाप है, मैं इसकी गलतियाँ कि मुआफी मैं तुमसे मांगता हूँ” आप ने माँ बाप को बच्चों की गलतियाँ के लिए मुआफी मांगते देखा होगा, मगर आज मुझे अपने बाप की शिकायत सुननी पड रही है और मैं इस कि लिए, आप जो फैसला करेंगे वो हमें मानना होगा"। ये सुन कर वह भीगी बिल्ली बन बैठ गया और सभी लोग हैरान थे, उनके चेहरों पर चुप छा गई थी,उन्हें लगा जैसे गंगा उलटी बहना शुरू हो गई है ।
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय लघुकथा सुंदर और सशक्त होते हुए भी मैं आदरणीय कान्ता रॉय जी की टिप्पणी से सहमत हूँ। वैसे एक अलग विषय की इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई।
आदरणीय मोहन जी आप की कथानक का सशक्त होना मुझे बहुत भाया है। विषय बिलकुल नया है और प्रस्तुति भी बढ़िया लेकिन बीच के कुछ हिस्से में कथा में बिखराव सा महसूस किया है मैंने, लेकिन पंच मुझे भा गया है। बरी जबरदस्त लघुकथा हुई है। बधाई
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