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हर आदमी रो रहा है

अभी अभी जन्मे हो
फिर भी इतना रोना धोना
बात क्या है
क्यों रो रहे हो बच्चे ?
मैंने पूछ लिया
एक प्रश्न बेवजह ।।
बच्चा चमत्कारी था
बोल पडा झट से
क्यों नहीं रोऊँ मैं
इस दुनिया में आके
जबकि इस दुनिया में
गरीब रो रहा है
अमीर रो रहा है
बेऔलाद रो रहा है
औलाद वाला रो रहा है
इस दुनिया में सब लोग
मेरी तरह नंगे हाल आये
फिर भी सब के सब रो रहे हैं
जो हँस रहा है
वो भी रो रहा है
जो रो रहा है वो भी रहा है
जब पूरी दुनिया रो रही है बेवजह
तो मैं भी रो रहा हूँ बेवजह

उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित



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Comment by kanta roy on October 22, 2015 at 6:59am
जब पूरी दुनिया रो रही है बेवजह
तो मैं भी रो रहा हूँ बेवजह
---- बेहद ही शानदार रचना हुई है यह । बधाई स्वीकार करें ।
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on October 21, 2015 at 4:22pm

बहुत बार हम बेवजह भी रोना रोते हैं ...शायद इसी स्थिति की तरफ आपका ईशारा है ...क्या मैं सही हूँ ?

Comment by umesh katara on October 19, 2015 at 7:15pm
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 18, 2015 at 7:47pm

वाह कटारा जी . यह भी एक नजरिया है .

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