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ज़मीर – ( लघुकथा ) -

  ज़मीर – ( लघुकथा ) -

गोपाल ने जैसे ही मेट्रो से बाहर निकलकर मोबाइल के लिये जेब में हाथ डाला!मोबाइल गायब था!उसके हाथ पैर फ़ूल गये!उसका सब कुछ ही मोबाइल में था!उसने क्या करना है ,कहां जाना है , उसके सारे कागज़ात की प्रतियां सब मोबाइल में ही थी!उसे कुछ नहीं सूझ रहा था!

तभी सामने उसे पी.सी.ओ. दिखा!उसने तुरंत अपना मोबाइल नंबर मिलाया!दूसरी ओर से आवाज़ आयी,हैलो, "आप कौन"!

"आप कौन हो भाई "!

"कमाल है भाई, फ़ोन आपने मिलाया है तो आप बताओ ना कि आप कौन हो"!

"देखो भाई, आप जो भी हो,मैं सिर्फ़ यह विनती  करना चाह्ता हूं कि जिस फ़ोन से आप बात कर रहे हो वह मेरा है!मेरे इसमें कुछ ज़रूरी मैसेज,डेटा और नंबर हैं!आप इसके बदले मुझसे  जितने चाहो पैसे ले लो,पर ये फ़ोन वापस दे दो"!

"कितने पैसे दोगे"!

"आप बताओ,कितने चाहिये"!

"चलो ठीक है ,तुम मेट्रो  स्टेशन के बाहर स्कूटर स्टैंड के गेट  पर आ जाओ,मैंने नीली जीन्स और लाल टी शर्ट पहन रखी है"!

गोपाल दौडता हुआ बताई ज़गह पर पहुंच गया!वह आदमी भी वहीं पर   मिल गया!उसने मोबाइल गोपाल को दे दिया!

गोपाल ने पूछा,"भाई कितने पैसे"!

"यार मैं कोई जेबकतरा नहीं हूं!तुम्हारा मोबाइल मेट्रो में गिर गया था!मैंने उठाया तब तक तुम गायब हो गये"! 

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by TEJ VEER SINGH on October 22, 2015 at 1:41pm

हार्दिक आभार आदरणीय ओमप्रकाश जी, कांता जी, गणेश बागी जी!


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 22, 2015 at 9:13am

सकरात्मक सोच की परिणति है यह लघुकथा, सुन्दर सन्देश एक अच्छी लघुकथा जन्म ली है, बहुत बहुत बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह जी.

Comment by kanta roy on October 22, 2015 at 1:47am
पुर्वाग्रह से ग्रसित मन आशंका से डरा हुआ और ऐसे में एक सकारात्मक परिस्थिति का सामना करता है तो इंसानियत का वजूद जैसे फिर से साकार हो उठता है । बहुत खूब लघुकथा हुई है आपकी आदरणीय तेजवीर जी । बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Omprakash Kshatriya on October 21, 2015 at 7:56pm

आ भाई  TEJ VEER SINGH जी मैं ने एक  बार पहले भी कहा था. फिर दोबारा कहा रहा हूँ. क्या करूं ? कहे बिना रहा नहीं जा रहा है. आजकल आप को क्या होता जा रहा है. आप की लेखनी, आप की सोच और आप का तजुर्बा सब गजब ढा रहे है. दिन ब दिन आप की लेखनी में गजब का निखार आ रहा है. बधाई इस लघुकथा के लिए.

Comment by TEJ VEER SINGH on October 21, 2015 at 7:03pm

हार्दिक आभार आदरणीय राहिला जी!

Comment by TEJ VEER SINGH on October 21, 2015 at 7:02pm

हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी!यह आपकी दरियादिली है कि आपको लघुकथा पसंद आयी!

Comment by Rahila on October 21, 2015 at 4:02pm
बहुत अच्छी रचना आद.तेजवीर जी!ईमानदारी अभी बाकी है दुनिया में ।बहुत बधाई आपको ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on October 21, 2015 at 3:46pm

आदरणीय तेजवीर जी हलकी फुलकी सी, सादगी भरी और बहुत ही साधारण कथ्य के बावजूद लघुकथा बेहद प्रभावकारी  हुई है. ये लघुकथाकार के शिल्प और लेखनी का कमाल है. बहुत बधाई 

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