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आ० उस्मानी जी , आप बड़ा श्रम करते है किन्तु मित्र मैं पहले भी कह चुका हूँ केवल मात्रा निभा लेने से छंद सिद्ध् नहीं होता जैसे - गोविन्द गुरु दोऊ खड़े और गुरु गोविन्द दौऊ खड़े में सामान मात्रा है पर दोहे के लिय प्रथम विन्यास गलत है . वैसे हर छंद गेय होता है यदि मात्रिक विन्यास में प्रवाह नहीं है तो गेयता बाधित होती है . आप अपनी रचना गाकर देखें क्यासभी पंक्तियों में समान प्रवाह है - पहली पंक्ति को यदि इस प्रकार लिखें तो प्रवाह कैसा होगा-- जब पय पान कराये शिशु को , माँ ममता ही बरसाये -------इतरा रही हैं नव बधुयें में 16 के स्थान पर केवल 15 मात्रायें है . एकबार पुनः आपके श्रम को नमन --- अभ्यास कविता को मांजता है .... आमीन .
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