बेकार हजारों कोशिश भी,
इन आँखों को समझाने की ,
रखती हैं समुंदर को वश में,
और धार बहाये रहती हैं।
जबकि है मालूम इन्हें,
वो दूर हैं नजरों से फिर भी,
नजरें दीवारों पर क्यों,
टकटकी लगाये रहती हैं।
है असर मुहब्बत का इतना,
दिल सोचे कुछ, होता कुछ है,
सोना चाहे यादों के संग,
तो यादें जगाये रहती हैं।
शायद इनका भी दोष नहीं,
जब से नजरें चार हुई ,
उनकी बातें, उनकी यादें,
धड़कन में समाये रहती हैं ।
अजय शर्मा " अज्ञात "
मौलिक एवं अप्रकाशित
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