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कैसे अपने मधु पलों को .... (१००वी रचना )

कैसे अपने मधु पलों को शूल शैय्या पे छोड़   आऊँ
स्मृति घटों पर विरहपाश के कैसे बंधन तोड़ आऊं

विगत पलों के अवगुंठन में
इक दीप अधूरा जलता रहा
अधरों पर   लज्जा शेष रही
नैनों में स्वप्न मचलता रहा

एकांत पलों में तृप्ति भाव को किस आँगन मैं छोड़ आऊँ
प्रिय स्मृति घटों पर विरहपाश के कैसे बंधन तोड़ आऊँ

अधरों से मिलना अधरों का
तिमिर का मौन शृंगार हुआ
तृषित देह का देह मिलन से
अंगार पलों  का संचार हुआ

किस पल को मैं बना के जुगनू तिमिर देश में छोड़ आऊँ
प्रिय  स्मृति घटों पर विरहपाश के कैसे बंधन तोड़ आऊँ

वज्र क्षणों की मृदु रज कण से
अलंकृत सुधियों की श्वास हुई
अभिषेक पीर का हुआ नीर से
कम्पित उर की  हर आस हुई

लोचन के मैं अश्रु कलश को किस मेघ देश में छोड़ आऊँ
प्रिय स्मृति घटों पर विरहपाश के कैसे बंधन  तोड़ आऊँ

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on December 8, 2015 at 12:26pm

आ०  लक्ष्मण रामानुज लडीवाला  जी रचना की प्रस्तुति पर आपकी आत्मीय  प्रशंसा  का दिल से आभार। 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 8, 2015 at 11:28am

शतकीय  रचना पर  बधाई श्री सुशिल  सरना  जी  | भावपूर्ण रचना  के लिए  बधाई 

Comment by Sushil Sarna on December 5, 2015 at 6:30pm

आदरणीय कांता रॉय  जी रचना में निहित अहसासों को  आपने इतना मान दिया इसके लिए मैं आपका तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ। 

Comment by kanta roy on December 4, 2015 at 5:26pm

लोचन के मैं अश्रु कलश को किस मेघ देश में छोड़ आऊँ
प्रिय स्मृति घटों पर विरहपाश के कैसे बंधन तोड़ आऊँ------अदभुत ,सम्मोहित करती हुई पंक्तियाँ। बेहतरीन रचना है ये आपकी। बधाई कबील कीजिये आदरणीय सुशील सरना जी।

Comment by Sushil Sarna on December 2, 2015 at 9:31pm

आदरणीय Nita Kasar  जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का हृदयतल की गहराईयों से हार्दिक आभार।

Comment by Nita Kasar on December 2, 2015 at 6:59pm
सबसे पहिले शतकीय रचना के लिये हार्दिक बधाईयां आद०सुशील सरना जी ।सुंदर रचना प्रस्तुति पर पुन:बधाई आपको ।
Comment by Sushil Sarna on November 16, 2015 at 3:30pm

आदरणीया कल्पना जी रचना पर अपने शब्दों की स्नेह बरखा का तहे दिल से शुक्रिया।
.

Comment by Sushil Sarna on November 14, 2015 at 7:20pm

आ०  vijay nikore  जी रचना की प्रस्तुति पर आपकी आत्मीय  प्रशंसा  का दिल से आभार। 

Comment by vijay nikore on November 12, 2015 at 3:46pm

बहुत ही सुन्दर रचना है। बधाई।

Comment by Sushil Sarna on November 8, 2015 at 12:42pm

आदरणीय  Dr.Prachi Singh जी रचना ने आपको प्रभावित किया ,मेरे लिए गर्व की बात है। आपकी हृदयग्राही प्रशंसा एवं गेयता बाबत सुझाव का दिल से हार्दिक आभार। 

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