अमर गंध …
पी के संग सो गयी
पी के रंग हो गयी
प्रीत की डोर की
मैं पतंग हो गयी
दीप जलता रहा
सांस चलती रही
पी की बाहों में मैं
इक उमंग हो गयी
हर स्पर्श देह में
गीत भरता रहा
नैनों की झील की
मैं तरंग हो गयी
निशा ढलती रही
आँखें मलती रही
होठों की होठों से
एक जंग हो गयी
कुछ खबर न हुई
कब सहर हो गयी
साँसों में पी की मैं
अमर गंध हो गयी
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय Abid ali mansoori जी रचना की इस आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
हर स्पर्श देह में
गीत भरता रहा
नैनों की झील की
मैं तरंग हो गयी
कुछ खबर न हुई
कब सहर हो गयी
साँसों में पी की मैं
अमर गंध हो गयी
आदरणीय सुशील सरना जी बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है वधाई आपको!
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी रचना की में निहित भावों को सहमिति देती आपकी इस आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी रचना की भाव समीर ने आपको छुआ , मेरा सृजन सफल हुआ। इस आत्मीय स्नेह का हार्दिक आभार।
आदरणीय सुशील सरना सर बहुत सुन्दर प्रस्तुति हुई है हार्दिक बधाई
लाजवाब !! आ. सुशील भाई बहुत सुन्दर गीत रचना हुई है , दिली बधाइयाँ स्वीकार करें ।
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