दृग
शृंगार करते रहे
आंसुओं से
तृषित मन
आस की मरीचिका में
भटकता रहा
व्यथा
दूर तक फ़ैली नदी में
वायु वेग को सहती
बिन पाल की नाव सी
किसी किनारे की तलाश में
व्यथित रही
दृष्टि स्पर्श
प्रणय अस्तित्व को
नागपाश सा
स्वयंम में लपेटे रहा
अंतर्कथा के मौन पृष्ठों में
जीवन के इक मोड़ की त्रासदी
स्मृति सीप में
कराहती रही
कदम
धूप की तपन को
मन के अंतर्नाद में डूबे
एक क्षितिज की तलाश में
बढ़ते रहे ,बढ़ते रहे
अंततः
व्योम को अंगीकार किया
शून्य को स्वीकार किया
शिला खण्डों में
प्रणय की प्रतिध्वनि
कैसे जीवित रहती है
बदन के रोओं ने
इस सत्य को साकार किया
अंतःकरण की गहन कंदराओं के मौन ने
प्रणय को आकार दिया
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीया राजेश कुमारी जी रचना में निहित भावों पर आपकी आत्मीय सराहना का दिल से आभार। आदरणीया खेद है कि कंप्यूटर खराब होने के कारण में आपके स्नेह का आभार विलम्ब से व्यक्त कर रहा हूँ। पुनः आपके स्नेह का हार्दिक आभार एवं विलम्ब के लिए क्षमा।
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी रचना पर आपकी आत्मीय सराहना का दिल से आभार। आदरणीय खेद है कि कंप्यूटर खराब होने के कारण में आपके स्नेह का आभार विलम्ब से व्यक्त कर रहा हूँ। पुनः आपके स्नेह का हार्दिक आभार एवं विलम्ब के लिए क्षमा।
शिला खण्डों में
प्रणय की प्रतिध्वनि
कैसे जीवित रहती है
बदन के रोओं ने
इस सत्य को साकार किया
अंतःकरण की गहन कंदराओं के मौन ने
प्रणय को आकार दिया-----वाह वाह आ० सुशील सरना जी,शब्द चयन ,भाव ,प्रस्तुतीकरण सभी लिहाज से एक सफल अतुकांत कविता है जितनी भी तारीफ करो कम होगी |आपको दिल से ढेरो बधाईयाँ |
आदरणीय सुशील सरना सर, आपका शब्द चयन कई बार चकित कर देता है. इस प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई
आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी रचना के भावों को मान देती आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार।
आदरणीय Er. Ganesh Jee "Bagi" जी रचना मर्म को स्वीकृति देती आपकी हृदयग्राही प्रशंसात्मक प्रतिक्रिया का हार्दिक हार्दिक आभार।
आदरणीया कांता रॉय जी रचना में निहित भावों को आपने जिस आत्मीयता से समीक्षात्मक प्रतिक्रिया में उकेर कर रचना को मान दिया है बंदा उसके लिए आपका दिल की असीम गहराईयों से आभार व्यक्त करता है।
आदरणीय शिज्जु शकूर जी रचना में निहित भावों को आपने मान दिया , आपका दिल से शुक्रिया।
जीवन के इक मोड़ की त्रासदी
स्मृति सीप में
कराहती रही वाह i हमेशा की ही तरह एक खूबसूरत रचना ,बधाई स्वीकारें आदरणीय सुशील जी
उन्मुक्त विचरण करते विचारों को बाँधने का सफल प्रयास इस अतुकांत कविता के माध्यम से हुआ है, इस खुबसूरत अभिव्यक्ति पर बधाई स्वीकार करें आदरणीय सुशील सरना जी.
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