अंजामे मुहब्बत .......
कितनी अज़ीब हैं ज़िंदगी की राहें
हर मोड़
एक उलझी पहेली
हर राह पर फिसलन
हर नफ़स एक चुभन
गर्द में दफ़्न
वफ़ा और ज़फ़ा के अनसुने अनकहे
वो अफ़साने
जिन्हें सुनना चाहे
ये दिल बार बार
हर बार
कोई लफ्ज़ लबे दहलीज़ पे
इज़हार से शरम खाता है
और अश्के रवां रुखसार पे रुक जाता है
कह देती है सांस
साँसों में तपते अहसासों को
दे देती है खामोश धड़कनों को
अपनी धड़कनों की आवाज़
वो बात मुहब्बत की
जिसे लब बयां न कर पाये
शबे तारीक से कह दूँ तो
तो तड़प को करार आये
है अज़ल ही गर ज़िंदगी में अंजामे मुहब्बत
तो ऐ ख़ुदा
ये अज़ल ज़िंदगी में
हर लम्हा आये
हज़ार बार आये
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय समीर कबीर जी प्रस्तुति पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से शुक्रिया।
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी सृजन पर आपकी मधुर प्रतिक्रिया का दिल से शुक्रिया।
आदरणीय डॉ गोपाल नरायन श्रीवास्तव जी सृजन पर आपकी स्नेहाशीष का दिल से शुक्रिया।
आदरणीया कांता रॉय जी रचना में निहित भावों को स्वीकृति देती आपकी मधुर प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी प्रस्तुति पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय सुशील सरना भाई , खूब सूरत भाव पूर्ण रचना के लिये हार्दिक बधाई ॥
आ० सरना जी भाव सज्जित रचना हेतु बधाई
आदरणीय सुशील सरना सर बढ़िया प्रस्तुति हार्दिक बधाई आपको
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