For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

खिसिया जाते, बात बात पर

दिखलाते ख़ंजर

पूँजी के बंदर

 

अभिनेता ही नायक है अब

और वही खलनायक

जनता के सारे सेवक हैं

पूँजी के अभिभावक

 

चमकीले पर्दे पर लगता

नाला भी सागर

 

सबसे ज़्यादा पैसा जिसमें

वही खेल है मज़हब

बिक जाये जो, कालजयी है

उसका लेखक है रब

 

बिछड़ गये सूखी रोटी से

प्याज और अरहर

 

जीना है तो ताला मारो

कलम और जिह्वा पर

गली मुहल्ले साँड़ सूँघते

सब काग़ज़ सब अक्षर

 

पौध प्रेम की सूख गई है

नफ़रत से डरकर

-------------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 354

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 15, 2015 at 9:19am
आदरणीय मिथिलेश जी, मार्गदर्शन के लिए हृदय से आभारी हूँ।
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 15, 2015 at 9:17am
आदरणीय सौरभ जी, मार्गदर्शन के लिए तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 12, 2015 at 11:41pm

आदरणीय बड़े भाई धर्मेन्द्र जी बढ़िया नवगीत हुआ है बधाई. बाकी बातें आदरणीय सौरभ सर ने कह ही दी है. आपकी रचनाओं में आपकी छाप होती है. आपकी शैली की जो पहचान है वह इस प्रस्तुति में दिखाई नहीं दे रही है. फिर वही वही का आभास न जाने क्यों अखर रहा है. खैर ये मेरी समझ की कमी भी हो सकती है. सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 12, 2015 at 11:32pm

आदरणीय धर्मेन्द्रजी, आपसे एक अरसे बाद शायद नवगीत सुन रहा हूँ. इसकेलिए तो हार्दिक बधाई बनती है.

नवगीतों का शिल्प, उसकी दशा और उसका कथ्य सामयिकता को संतुष्ट करता है. नवगीतकार से अपेक्षा भी होती है वह तथ्यों को सटीक और स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करे. लेकिन लाक्षणिकता अपने मुखर स्वरूप में होती है. 

आपकी प्रस्तुति इन विन्दुओं को संतुष्ट करती हुई भी कई अर्थों में सायास लग रही है.  

दिखलाते खंजर / पूँजी के बन्दर .. यह व्यंजना कुछ जमी नहीं.

आगे के सारे बिम्ब पूर्वाभासी से हैं. इससे बेहतर होता अभिधात्मकता को प्रश्रय भले न दिया जाता किन्तु कथ्य स्पष्ट होता.

प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service