For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक मज़दूर की आत्मा....

ये जो सफेद स्वीमिंग पूल है
पूल समझने की तुम्हारी भूल है
इसे मैंने मेरे ख़ून से रंगा है
तब कहीं ये इतना झकाझक है
तुम्हारी ज़िंदगी दौड़ रही है
लेकिन मुझे मौत खचोड़ रही है
ये दूधिया बल्ब
ये चमचमाती ट्यूबलाइटें
ये मेहराब सा कोई बुलंद दरवाजा
बड़ा से गेट
अंदर क़ैद नीला गहरा तलछटी तक
पारदर्शी पानी
वो मुसटंड डंडधारी गार्ड
मेरी आत्मा को बाहर से ही भगा देते हैं
भटकता हूं मैं जब रात को
कहते हुए इंसाफ़ की बात को
कभी ऑडी को तो कभी लैंड रोवर को
छूता, तलाशता इनके भीतर आदमियों को
बेरहम क़ातिलों से चेहरे वाले
तैरने आते हैं यहां
कभी वे भावुक हो इंसां भी बन जाते हैं
टिप जब मुसटंड कोई गार्ड पाते हैं
मुझे इल्म नहीं था
मरकर भी जो सुकूं न पाऊंगा
वो दिन याद तो होगा नहीं तुम्हें
बेशक नहीं होगा
मेरी मौत का दिन
जब ये पूल बन रहा था
तीसरी मंजिल पर एक लोह पिंज्जर तन रहा था
मैं वहीं बिना सेफ्टी मेजर टंगा था
काम के रंग में रंगा था
दूर कहीं रायगढ़ के बीहड़ गांव में
राखड़ की आग में जिंदल की छांव में
मेरी दुधमुंही कलेजे से मां के चिपकी थी
बस चंद रुपये लेकर दूध की बोटल लेता
एक झगला, टोपी और
पौं-पौं बोलता कोई खिलौना भी
शाम होने को थी
काम होने को था
रुपया बंटने को था
मगर बदकिस्मती से मेरा पैर फिसला
तिमंजिला रायपुर के पूल से पत्थर पर जा गिरा
पौंद के बल
चकनाचूर हो गईं हड्डियां
चंद मिनट भी न जीया
बस बन गया था एक मेहतर के लिए लाश
पुलिस के लिए अनसुलझा केस
आरोपियों की तलाश
ठेकेदार के लिए आपदा और अपशकुन
और पत्रकार दीपक तुम
तुम्हारे लिए एक ख़बर
इन जनाब के लिए एक कविता
मंच पर संवेदनाओं का जखीरा लूटने की
मार्क्स, नक्सल सा अंदर से टूटने की
दो साल से खोज रहा हूं
मेरे हत्यारे को
जेब में कोई पहचान का कागज न था
पत्नी आज भी आस में है
अंबेडकर की मर्च्युरी में रहा
फिर दफ्न हुआ
अब अकाल मरा हूं तो ईश्वर भी आने नहीं देता
सो इस पूल के आसपास ही रहता हूं
हर व्यक्ति से अपनी कहानी कहता हूं
मगर न उनके पास कान हैं
न मेरे पास आवाज़
भूत बन बस यहीं बस रहा हूं
कोई महसूस कर ले
मेरी उस दो साल की
सालों से नहाई नहीं बार्बी को बता दे
रायगढ़ स्टेशन पर खेलती वो
भीख मांगना-भीख मांगना
कोई बता दे उसे भी
मेरी राह में सिंदूरी मांग काढ़े
वो पर पुरुषों की जांघ पर बैठी है
ज़िंदगी में दग्ध
मेरी वाट जोहती
दीपक तुम्ही बता दो
तुम तो पत्रकार हो
मेरी शहादत ने तुम्हें
एक मजदूर की मौत का एंकर शाॅट दिया था
उसी का कर्ज़ लौटा दो
किससे मांगू इंसाफ
ठेकेदार
पुलिस
पत्रकार
या
कविराज तुमसे
ईश्वर ने ख़ुद ही रख छोड़ा है भूत योनि में
भटकने को उम्र पूरी होने तक
- सखाजी
(साल 2013 में रायपुर संस्कृत काॅलेज परिसर में निर्माणाधीन भव्य अंतरराष्ट्रीय स्वीमिंग पूल की तीसरी मंजिल से गिरकर मृत एक मज़दूर की आत्मा से साक्षात्कार)
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 515

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 17, 2015 at 3:12pm

आ० सखा जी -- आपकी  संवेदना को सलाम -- कवि कर्म  से कुछ अधिक अपेक्षा थी  पर यह एक यात्रा है  यदि  इस कविता को  प्रस्थान बिंदु माने तो  आप भविष्य की उम्मीद से लगते हैं . सादर .

Comment by बरुण सखाजी on November 16, 2015 at 4:49pm
पंकज सर अनंत धन्यवाद।
Comment by बरुण सखाजी on November 16, 2015 at 4:48pm
जवाहर सर। धन्यवाद। दरअसल कविता घटना के करीब ढाई साल बाद प्रकट हुई, तो संभव है वह एक नज़र औपचारिक कविता लगे, परंतु यह मैंने महसूस की है, इत्तेफाक से वह कविता बन पड़ी।
Comment by बरुण सखाजी on November 16, 2015 at 4:46pm
आदरणीय सौरभ सर। आपके मार्गदर्शन का आभारी हूँ। प्रयत्न करूँगा कि अपनी क्षमता से अधिक सोच सकूँ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 16, 2015 at 4:36pm

कविता लेखन की संवेदना को तार्किकता और भावाभिव्यक्ति के व्यंजनात्मक विउन्दुओं से संतुष्ट करने का प्रयास करें.  कविता अच्छी हुई है, आदरणीय सखाजी, किन्तु कुछ वाचाल हो गयी है. कई प्रतीक गढ़े और ओढे हुए हैं, जिनसे बचना था. लेकिन फिरभी कहूँगा, आपकी संवेदना आपकी लेखनी से बहुत कुछ लेने वाली है. 

शुभेच्छाएँ

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on November 15, 2015 at 9:43pm

पूरी रचना, जैसे आँखों देखा हाल,
मजदूर के पसीने में तरबतर भाल !
जिंदगी के आश में मौत का पैगाम,
बोलो मजदूर क्या है तेरा नाम?
भगवन उस मजदूर और ऐसे अनेक अनजाने मजदूर की आत्मा को शांति प्रदान करें!

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 14, 2015 at 10:01am
संवेदना संवेदना बस संवेदना।

एक मज़बूत आवाज़


बधाइयाँ

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
6 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
14 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
15 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, इस प्रस्तुति को समय देने और प्रशंसा के लिए हार्दिक dhanyavaad| "
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपने इस प्रस्तुति को वास्तव में आवश्यक समय दिया है. हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार…"
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी आपकी प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद. वैसे आपका गीत भावों से समृद्ध है.…"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्र को साकार करते सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"सार छंद +++++++++ धोखेबाज पड़ोसी अपना, राम राम तो कहता।           …"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"भारती का लाड़ला है वो भारत रखवाला है ! उत्तुंग हिमालय सा ऊँचा,  उड़ता ध्वज तिरंगा  वीर…"
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"शुक्रिया आदरणीय चेतन जी इस हौसला अफ़ज़ाई के लिए तीसरे का सानी स्पष्ट करने की कोशिश जारी है ताज में…"
Friday
Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"संवेदनाहीन और क्रूरता का बखान भी कविता हो सकती है, पहली बार जाना !  औचित्य काव्य  / कविता…"
Friday
Chetan Prakash commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"अच्छी ग़ज़ल हुई, भाई  आज़ी तमाम! लेकिन तीसरे शे'र के सानी का भाव  स्पष्ट  नहीं…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service