अरकान - 122 122 122 122
नया कोई सपना सजाकर तो देखो|
परायों को अपना बनाकर तो देखो
लगेगी ए दुनिया तुम्हें खूबसूरत,
ज़रा दिल से नफ़रत भुलाकर तो देखो|
सफलता मिलेगी तुम्हें भी यकीनन,
कदम अपने तुम भी बढाकर तो देखो|
बहू-बेटियाँ क्यों न पर्दा करेगी,
हया उनको तुम भी सिखाकर तो देखो|
करोगे जहां को भी सूरज –सा रोशन,
तुम अपने को पहले तपाकर तो देखो|
बनेंगे तुम्हारे सभी दोस्त अपने,
सबक दोस्ती का सिखाकर तो देखो|
ए राहे मुहब्बत है पुरखार यारो,
यहाँ फूल फिर भी सजाकर तो देखो|
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय महर्षि त्रिपाठी जी........ शुक्रिया
बहू-बेटियाँ क्यों न पर्दा करेगी,
हया उनको तुम भी सिखाकर तो देखो|
करोगे जहां को भी सूरज –सा रोशन,
तुम अपने को पहले तपाकर तो देखो|
बनेंगे तुम्हारे सभी दोस्त अपने,
सबक दोस्ती का सिखाकर तो देखो|
बहुत उम्दा शेर आ.BAIJNATH SHARMA'MINTU' जी ,बधाई आपको |
आदरणीय रवि साहेब .......... सुझाव देने व हौसला बढ़ाने हेतु ...... तहेदिल से नमन व शुक्रिया |
आदरणीया राहिला साहिबा जी ....... हौसला अफजाई के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया |
आदरणीय सतविंदर जी .... शुक्रिया|
आदरणीय बैजनाथ जी बहुत खूबसूरत प्रवाह वाली ग़ज़ल कही है आपने बधाई स्वीकार करें
सफलता मिलेगी तुम्हें भी यकीनन,
कदम अपने तुम भी बढाकर तो देखो| कदम तो बढाना ही पड़ेगा बहुत सुन्दर
कुछ टंकण त्रुटियों का पोस्ट करने से पहले सुधारा जा सकता था ।
इस ग़जल को पढ़ते हुए भारतीय छंद विधान के भुजंग प्रयात छंद का का शानदार प्रवाह आनंद दे रहा था । बधाई स्वीकार करें ।
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