२१२२ ११२२ ११२२ २२
अपनी खुशियों पे नया रंग चढ़ाकर देखो
बंद पिंजरे के ये पंछी तो उड़ाकर देखो
मेरी आँखों से बहा जाता है आँसू बनकर
अपनी यादों में कभी खुद को जलाकर देखो
बात बन जायेगी बिगड़ी है जो सदियों से यहाँ
तुम ज़रा अपनी अना को तो झुकाकर देखो
सिर्फ बातों के सहारे न हवा में उड़ना
तुम हकीकत नज़र आज मिलाकर देखो
तुमको हर नेकी के बदले में मिलेगी खुशियाँ
राह में सबके लिए फूल सजाकर देखो
मैंने यादों के बनाये हैं महल अपने कई
ख्वाब मेरे हैं इन्हें अपना बनाकर देखो
पास मेरे तो ज़खीरा है तेरी यादों का
तुम भी सोये हुये जज़्बात जगाकर देखो
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय सौरभ सर रचना पर आपकी टिप्पणी और सलाह का बहुत बहुत शुक्रिया .... हमने संशोधन कर दिया है आगे भी स्नेह बनाये रखें ।
सादर ...
नादिर भाई, आपकी ग़ज़ल पर दाद कह रहा हूँ. आदरणीय मिथिलेश भाई की सलाह सटीक लगी.
शुभेच्छाएँ
हौसला अफजाई का शुक्रिया आदरणीय अजय कुमार साहब ....
बेहतरीन गजल। ढेर सारी बधाइयाँ स्वीकार करें।
आदरणीय तेज वीर साहब आपको रचना पसंद आई लेखन सार्थक हुआ बहुत शुक्रिया आपका
आभार ...
हार्दिक बधाई आदरणीय नादिर खान साहब!मन के कोने कोने को छू कर गुजर गयी,आपकी यह प्रस्तुति!
बात बन जायेगी बिगडी है जो सदियों से यहां,तुम ज़रा अपनी अना को तो झुका कर देखो!
सबसे बेहतरीन पंक्ति!
पुनः बधाई!
आदरणीय मिथिलेश जी रचना को आपने सराहा आपका बहुत शुक्रिया ..
आपकी सलाह सर आँखों पर ....इन दो मिसरोन मे कौन स ज्यादा उपयुक्त लग रहा है कृपया मार्गदर्शन करें
सिर्फ बातों के सहारे न हवा में उड़ना
तुम हकीकत से नज़र आज मिलाकर देखो
तुम हकीकत से नज़र भी तो मिलाकर देखो
सादर ...
आदरणीय सर्वोत्तम जी , आदरणीय श्याम नारायण जी एवं आदरणीय रवि शुक्ला जी हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया .....
बेहतरीन रचना है दिली दाद हाज़िर है सादर , |
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