For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हाँ, तुम बंट गए उस दिन कबीर

 

अहो कबीर !

कही पढा था या सुना

तम्हारी मृत्यु पर

लडे थे हिन्दू और मुसलमान 

जिनको तुमने

जिन्दगी भर लगाई फटकार

वे तुम्हारी मृत्यु पर भी

नहीं आये बाज

और एक

तुम्हारी मृत देह को जलाने   

तथा दूसरा दफनाने  

की जिद करता रहा

और तुम

कफ़न के आवरण में बिद्ध

जार-जार रोते इस  मानव प्रवृत्ति पर 

अंततः हारकर मरने के बाद भी  

तुमने किया था स्वरुप परिवर्तन  

क्योंकि हटाया गया

कफ़न जब तुम्हारा

नहीं था वहां पर कोई मृत शरीर

केवल पड़े थे दो ताजे फूल 

जिन्हें दो समुदायों ने

आपस मे बाँट लिया

हाँ, तुम बंट गए उस दिन कबीर  

और यह बंटवारा

किया तुम्हारे शिष्यों ने 

साक्षी है वह भूमि

जहां तुमने त्यागे प्राण

 

आज भी वहां पर हैं

दिखती दो समाधियाँ

करती हुयी ऐलान

कि वह मन्त्रदाता, वह योगी, वह संत

जिसने किया था पाखण्ड का विरोध   

बंट गया मगहर में   

लोगों की जिद से

आमी का अमिय जल

हुआ उसी क्षण कसैला

जहां स्नान-पान कभी

करते थे तुम कबीर ! 

 

(मौलिक व् अप्रकाशित)

Views: 839

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by LOON KARAN CHHAJER on January 8, 2016 at 6:02pm

आज भी वहां पर हैं

दिखती दो समाधियाँ

करती हुयी ऐलान

कि वह मन्त्रदाता, वह योगी, वह संत

जिसने किया था पाखण्ड का विरोध   

बंट गया मगहर में   

लोगों की जिद से

बहुत खूब। ..बधाई

Comment by Shyam Narain Verma on December 30, 2015 at 1:02pm
बहुत सुन्दर ... सादर बधाई स्वीकारें आदरणीय
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 28, 2015 at 8:34am
बहुत ही सटीक एवम् सुंदर शब्दाभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय।
Comment by Satyanarayan Singh on December 27, 2015 at 10:12pm

कबीर के  हिन्दू-मुस्लिम शिष्य उनके मृत्युपरांत शव को लेकर आपस में उलझे उन अज्ञानी शिष्यों को उनकी मृत्यु भी एक दृष्टांत का कारण बनी  रचना के माध्यम से  इस गूढ़ ज्ञान को साझा करने  हेतु  आदरणीय डॉ. गोपाल नारायन सादर बधाई स्वीकार करें.  

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 27, 2015 at 9:24pm

आ०  सौरभ पांडेयजी -आपके टीप का स्वागत करता हूँ , सादर .  

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 27, 2015 at 9:22pm

आ० कांता रॉय जी - आप्यायित हुआ सादर . 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 27, 2015 at 9:21pm

प्रिय जान - बहुत बहुत आभार . 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 27, 2015 at 9:21pm

आ० विजय निकोर जी - सादर चरणस्पर्श . 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 27, 2015 at 9:20pm

आ० लडी वाला जी- आपका बहुत बहुत आभार . 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 27, 2015 at 9:19pm

आ० विजय सर !  अनुग्रहीत हुआ सादर . 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय चेतन जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
4 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मतले के उला के बारे में…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए आभार।"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  सरना साहब,  दोहा छंद में अच्छा विरह वर्णन किया, आपने, किन्तु  कुछ …"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ.आ आ. भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर.आपकी ग़ज़ल के मतला का ऊला, बेबह्र है, देखिएगा !"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service