हाँ, तुम बंट गए उस दिन कबीर
अहो कबीर !
कही पढा था या सुना
तम्हारी मृत्यु पर
लडे थे हिन्दू और मुसलमान
जिनको तुमने
जिन्दगी भर लगाई फटकार
वे तुम्हारी मृत्यु पर भी
नहीं आये बाज
और एक
तुम्हारी मृत देह को जलाने
तथा दूसरा दफनाने
की जिद करता रहा
और तुम
कफ़न के आवरण में बिद्ध
जार-जार रोते इस मानव प्रवृत्ति पर
अंततः हारकर मरने के बाद भी
तुमने किया था स्वरुप परिवर्तन
क्योंकि हटाया गया
कफ़न जब तुम्हारा
नहीं था वहां पर कोई मृत शरीर
केवल पड़े थे दो ताजे फूल
जिन्हें दो समुदायों ने
आपस मे बाँट लिया
हाँ, तुम बंट गए उस दिन कबीर
और यह बंटवारा
किया तुम्हारे शिष्यों ने
साक्षी है वह भूमि
जहां तुमने त्यागे प्राण
आज भी वहां पर हैं
दिखती दो समाधियाँ
करती हुयी ऐलान
कि वह मन्त्रदाता, वह योगी, वह संत
जिसने किया था पाखण्ड का विरोध
बंट गया मगहर में
लोगों की जिद से
आमी का अमिय जल
हुआ उसी क्षण कसैला
जहां स्नान-पान कभी
करते थे तुम कबीर !
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Comment
आज भी वहां पर हैं
दिखती दो समाधियाँ
करती हुयी ऐलान
कि वह मन्त्रदाता, वह योगी, वह संत
जिसने किया था पाखण्ड का विरोध
बंट गया मगहर में
लोगों की जिद से
बहुत खूब। ..बधाई
बहुत सुन्दर ... सादर बधाई स्वीकारें आदरणीय |
कबीर के हिन्दू-मुस्लिम शिष्य उनके मृत्युपरांत शव को लेकर आपस में उलझे उन अज्ञानी शिष्यों को उनकी मृत्यु भी एक दृष्टांत का कारण बनी रचना के माध्यम से इस गूढ़ ज्ञान को साझा करने हेतु आदरणीय डॉ. गोपाल नारायन सादर बधाई स्वीकार करें.
आ० सौरभ पांडेयजी -आपके टीप का स्वागत करता हूँ , सादर .
आ० कांता रॉय जी - आप्यायित हुआ सादर .
प्रिय जान - बहुत बहुत आभार .
आ० विजय निकोर जी - सादर चरणस्पर्श .
आ० लडी वाला जी- आपका बहुत बहुत आभार .
आ० विजय सर ! अनुग्रहीत हुआ सादर .
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