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आदरणीय समर साहब इस ग़ज़ल की बह्र कृपया बता दें थोड़ी आसानी हो जाएगी
आदरणीय आशुतोष जी आपकी टिप्पणी में आपके भाव अभिव्यक्त नहीं हो पाये वस्तुत: आप कहना क्या चाहते है
यदि आपको समर कबीर जी द्वारा पेश इस ग़ज़ल में कथित मीटर की कमी नजर आई तो उस तरफ ध्यान दिलाने का निवेदन समर साहब ने भी किया था किन्तु आप विषय से हटकर और ही बात रख रहे है और विषयांतर कर रहे है । यह मंच सीखने और सिखाने का है यदि आप इसी भाव से सीखने के लिये तत्पर है तो कुछ ग्रहण कर पाएंगे ( आपने स्वयं ये भी लिखा है कि आप नौसिखिया है ) नहीं तो शेर तो क्या आप अल्फाज के मानी तक भी नहीं पंहुच पांएगे
समर साहब का ही एक शेर तरही मुशायरा संख्या 65 से लेकर यहां सन्दर्भ के लिये पेश कर रहे है ।
शाइरी क्या है,मियाँ ख़ुद ही समझ जाओगे
मेरे अशआर की तह में तो उतर कर देखो
बादल तो मुक्त भाव से पानी की बारिश करता है किन्तु यह पात्र की सामर्थ्य है कि वह कितना ग्रहण कर पाता है । सादर
समर कबीर जी इसी साईट पर ग़ज़ल लिखने की कला सिखाने का बहुत उम्दा प्रयत्न किया गया है. मैं खुद नौशिखिया हूँ. लेकिन मैं क्या क्या गलती करता हूँ वो मुझे पता है .
कलाकार का हर कला में उसके दिल के उदगार सामने आते हैं. उससे पता चलता है की आपकी सोच की सुन्दरता कितनी है. इस स्तर पर आपकी अभिवयक्ति काफी सुन्दर और सार्थक है. मगर ग़ज़ल लिखने की विधि काफी कठिन है क्यूंकि मैं खुद उसे सिख रहा हूँ.
इंसान इंसान ही रहे तो दुनिया जन्नत हो जाये
नफरत की हवा जो बह रही है उसका अंत हो जाये
लोग जियें तो मिल जुलकर कुछ इस अदा से
हर हाल में दिल में प्रेम हो ये फितरत हो जाये
हर आदमी यहाँ बेमिशाल है खुदा का करम है ये
यही कामना है लोगों की पूरी हर मन्नत हो जाए
आदरणीय समर साहब आपके और आुशतोष जी के संवाद को पढकर कई भाव एक साथ आये गये पहले तो हंसी आई अफसोस हआ और आश्चर्य भी ।
आशुतोष जी आपके लिये शायद ये शेर सही रहेगा
करता ही रहा है ये ख़ता करता रहेगा
इन्सान फिर इंसाँ है फ़रिश्ता तो नहीं है
मैं चाँद के बारे में बस इतना ही कहूँगा
दिलकश है मगर आपके जैसा तो नहीं है वाह वाह क्या बात है रवायती अंदाज के शेर हमें बहुत बहुत पंसद आते है
आदरणीय आखिरी शेर के लिये अपने मित्र से थोड़ी पृष्ठ भूमि की जानकारी लेनी पड़ी बहुत उम्दा ख्याल हुआ है सलाम के शेर के लिये दिली मुबारक बाद कुबूल करें ।सादर ।
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