बेहाल होकर वह मोहित को एकटक देखे जा रही थी। चादर से ढका शव, शान्त चेहरा , सब्र आँखों से टूट कर बह रहा था , लेकिन रुदन हलक में जैसे अटक गया हो ,--" क्या हुआ तुम्हें ? आँखे न खोलोगे मोहित , देखो , मैं बेसब्र हो रही हूँ। क्या तुम यूँ अकेला मुझे छोड़ जाओगे ? तुमने तो कहा था, कि तमाम उम्र मेरा साथ दोगे, फिर ऐसे बीच राह में मुझे छोड़ , कहाँ , क्यों ? "-- होठों पर ताले जडे हुए थे , लेकिन आँखों ने सारी मर्यादा तोड़ दी थी. उसे एहसास हुआ दो नज़रों का घूरना , वह ग्लानि से भर उठी। अपराधी थी उन दो नज़रों की। शायद उसको यहां आने का , इस मातम का अधिकार नहीं था।
उसके मंगलसूत्र और सिन्दूर का कोई मोल नहीं था समाज की नज़र में , जो मोहित ने मंदिर में सात फेरे लेते हुए पहनाये थे । सूनी नज़र अब तक टिकी हुई थी उस पर , वही थी असली हकदार , इस शव पर रोने की। वह पत्नी कहलाती थी और इनके बच्चों की माँ भी ,
पर वह किस अधिकार, यहां ? सिर्फ प्यार का रिश्ता ? अंतरंगता का रिश्ता ? ये रिश्ता मंगलसूत्र और चुटकी भर सिंदूर देकर भी, उसकी विधवा कहलाने का अधिकार नहीं देता है ।
बार -बार कहता था कि , ---- सुमि , मेरा नाता सिर्फ तुम से है , देखना एक दिन तुम्हें तुम्हारा हक़ जरूर मिलेगा।
मन हो रहा था , दोनों हाथो से उसके चेहरे को छूकर देखू। अक्सर कहते थे कि --तुम्हारे स्पर्श से मैं मरता हुआ भी जी उठूंगा ,
वह छूना चाहती थी उसे , लिपटकर रोना चाहती थी , शायद उसकी प्रीत की गर्मी से जाग जाए और खड़े होकर कहे एकदम से कि --देखो मैं ना कहता था , कि तुम्हारे छूने भर से, मैं मरता जी उठूंगा !
अचानक आस -पास सरगर्मी बढ़ गयी, महिलाओं ने विधवा होने की रस्म- अदायगी शुरू कर दी। उसे भी ये रस्म निभानी थी उनके नाम की ,लेकिन ....... ? वह छटपटा उठी , कैसे संभालेगी अब स्वयं को यहां........!
"आपको वहाँ बुलाया जा रहां है "
"कहाँ ? " वह चौंकी !
नज़र सामने जाकर , टकराकर , वापस गुनहगार सी झुक गयी।
" आ बैठ यहां , तुझे भी तो ये रस्म करनी है ! "
स्तब्ध सी बैठ गयी ,
"वह , मुझसे अधिक तेरा ही था। चल , उसके जिन्दा रहते न सही , लेकिन उसकी विधवा होकर तो साथ रह ! " --
देर से हलक में अटकी हुई हिचकियों ने विलाप के सारे बाँध हठात तोड़ दिए।
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
आपको कथा पसंद आना यानि कथा का सच में सही बन पड़ना हुआ है लगता है ! चकित हूँ और खुश भी। फिर भी आपसे निवेदन है की आप सदा मार्गदर्शनयुक्त दिया करे जिससे मेरा लेखन के प्रति सचेतन बना रहेगा आदरणीय मिथिलेश जी। आभार।
मेरी कोशिश का आपके दिल का अच्छा लगना , मेरे लिए लेखन का मानो उत्साह दुगुना कर गया। आभार आपको आदरणीय नादिर खान जी हृदयतल से इस सराहना के लिए ।
आपको कथा पसंद आई ये मेरे लिए हर्ष का विषय है आदरणीया नीता कसार जी। आपका यु हौसला बढ़ाना बहुत अच्छा लगता है। आभार।
मेरी कोशिश का आपके दिल तक पहुंचना मेरे लिए उत्साह का कारण बनी आदरणीय शहज़ाद जी। आभार आपको।
कथा पर आपका हौसला बढ़ाना सदा मेरे लेखन में उत्साह बढ़ा जाता है आदरणीय तेजवीर जी। आभार !
मेरा हौसला बढ़ने के लिए हृदयतल से आपका आभार आदरणीय सुनील जी।
कथा पसंदगी के लिए तहेदिल आभार आपको आदरणीय श्याम नारायण जी।
आदरणीया कांता जी, बहुत ही मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने. दिल से बधाई स्वीकार कीजिये
जिंदगी का अंतिम सत्य है, फिर भी स्वीकार करना कितना कठिन होता है।
मर्मस्पर्शीय, दिल को भेदने वाली सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई आदरणीय कान्ता जी|
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